![Voice Reader](https://rpsnews.com/wp-content/plugins/magic-post-voice/assets/img/play.png)
![Stop Voice Reader](https://rpsnews.com/wp-content/plugins/magic-post-voice/assets/img/stop.png)
![Pause](https://rpsnews.com/wp-content/plugins/magic-post-voice/assets/img/pause.png)
![Resume](https://rpsnews.com/wp-content/plugins/magic-post-voice/assets/img/play.png)
*सूर्यदेव को लाल चंदन और कनेर के पुष्प अत्यंत प्रिय क्यों हैं…?*
〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️
हिन्दू धर्म की पंचदेवोपासना में प्रथम स्थान सूर्योपासना का है। यह समस्त चराचर संसार भगवान सूर्य का ऋणी है क्योंकि संसार के समस्त जड़ और चेतन जगत् को जीवन-शक्ति और प्राण-शक्ति सूर्य के द्वारा ही प्राप्त होती है; इसीलिए सूर्य को प्राणियों का ‘प्राण’ कहा गया है । सूर्योपासना से मनुष्य को अद्भुत सुख-शान्ति की अनुभूति होती है ।
भगवान सूर्य की आराधना यदि भक्ति-भाव व विभिन्न सामग्रियों से कर ली जाए तो वे इन्द्र से भी अधिक वैभव, दीर्घायु, आरोग्य, ऐश्वर्य, धन, मित्र, आठ प्रकार के भोग, विभिन्न प्रकार की उन्नति के लिए व्यापक क्षेत्र, स्वर्ग और अपवर्ग सब कुछ प्रदान करते हैं।
भगवान सूर्य को अत्यंत प्रिय वस्तुएं
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
कनेर (करवीर) के पुष्प,
रक्त चंदन,
गुग्गुल का धूप,
ताम्र पात्र,
घी का दीपक,
फल,
घी के बने पुए,
मोदक का नैवेद्य
पुराण-ग्रंथ (इतिहास-पुराणों के वाचक की जो पूजा की जाती है उसे सूर्य देव की पूजा ही माना जाता है)
ये सब वस्तुएं भगवान सूर्य को अत्यन्त प्रिय हैं, लेकिन इन सबसे ऊपर है शुद्ध और निर्मल मन। भगवान सूर्य की आराधना करने वाले मनुष्य को राग-द्वेष, झूठ और हिंसा से दूर रहना चाहिए। कलुषित हृदय और अप्रसन्न मन से मनुष्य भगवान सूर्य को सब-कुछ अर्पित कर दे तो भी भगवान आदित्य उस पर प्रसन्न नहीं होते। लेकिन यदि शुद्ध हृदय से मात्र जल अर्पण करने पर सूर्य पूजा के दुर्लभ फल की प्राप्ति हो जाती है।
क्यों हैं सूर्य को लाल (रक्त) चंदन और कनेर (करवीर) के पुष्प अत्यंत प्रिय ?
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
देवताओं के शिल्पी (बढ़ई) विश्वकर्मा (त्वष्टा) की पुत्री संज्ञा बड़ी ही रूपवती थी। उसके अन्य नाम हैं—राज्ञी, द्यौ, त्वष्ट्री, प्रभा तथा सुरेणु। संज्ञा का विवाह भगवान सूर्य के साथ हुआ। संज्ञा बड़ी पतिव्रता थी, किन्तु सूर्य देव मानव रूप में उसके समीप नहीं जाते थे। सूर्य के अत्यधिक तेज के कारण संज्ञा की आंखें मूंद जाती थीं जिससे वह सूर्य का सुन्दर स्वरूप नहीं देख पाती थी। अत: संज्ञा को अच्छा नहीं लगता था। वह व्याकुल होकर सोचने लगी—मेरा सुवर्ण सा रंग व कमनीय शरीर इनके तेज से दग्ध होकर श्याम वर्ण का हो गया है। इनके साथ मेरा निर्वाह होना बहुत कठिन है तपस्या करने से मुझमें वह शक्ति आ सकती है, जिससे मैं उनके सुन्दर रूप को अच्छी तरह से देख सकूं।
उसी स्थिति में संज्ञा से सूर्य की तीन संतानें—वैवस्वत मनु, यम, व यमी (यमुना) हुईं; किन्तु सूर्य के तेज को न सह सकने के कारण अपने ही रूप-आकृति तथा वर्ण वाली अपनी ‘छाया’ को पति-सेवा में नियुक्त कर वह अपने पिता के घर चली गयी।
जब पिता ने उसे पति-गृह जाने के लिए कहा तो वह ‘उत्तरकुरु’ (हरियाणा) देश चली गयी। अपने सतीत्व की रक्षा के लिए उसने वडवा (मन के समान गति वाली घोड़ी, अश्विनी) का रूप धारण कर लिया और अपनी शक्ति वृद्धि के लिए कठोर तपस्या करने लगी।
सूर्य के समीप संज्ञा के रूप में उसकी छाया निवास करती थी। छाया का दूसरा नाम विक्षुभा है। उसके सभी अंग, बोल-चाल, आकृति संज्ञा जैसे ही थे; इसलिए सूर्य देव को यह रहस्य ज्ञात नहीं हो पाया। सूर्य ने भी छाया को ही अपनी पत्नी समझा और उससे उन्हें चार संतानें—सावर्णि मनु, शनि, तपती तथा विष्टि (भद्रा) हुईं !
छाया अपनी संतानों को अधिक प्यार करती थी और वैवस्वत मनु, यम तथा यमी का निरन्तर तिरस्कार करती रहती थी। पर विधाता का विधान तो देखें, छाया के विषमतापूर्ण व्यवहार का भंडाफोड़ हो गया। कुपित सूर्य छाया के पास पहुंचे और उसके केश पकड़ कर पूछा—‘सच-सच बता, तू कौन है ? कोई भी माता अपने बच्चों के साथ ऐसा निम्न कोटि का व्यवहार नहीं कर सकती ।’
यह सुन कर भयभीत छाया ने सूर्य के सामने सारा रहस्य प्रकट कर दिया। शीघ्र ही सूर्य संज्ञा को खोजते हुए उसके पिता विश्वकर्मा के घर पहुंचे। विश्वकर्मा ने सूर्य को संज्ञा के उनका तेज न सहन करने और उत्तरकुरु नामक स्थान पर तपस्या करने की बात बताई। साथ ही कहा कि यदि आप चाहें तो आपके प्रकाश को तराश कर कम किया जा सकता है। भगवान सूर्य अपनी पत्नी की प्रसन्नता के लिए कष्ट सहने को तैयार हो गए।
भगवान सूर्य ने विश्वकर्मा से अपना सुन्दर रूप प्रकाशित करने को कहा। विश्वकर्मा ने सूर्य की इच्छा पर अपने तक्षण-कर्म से उनके तेज को व्रज की सान पर खरादना आरम्भ किया। अंगों को तराशने के कारण सूर्य को अत्यंत पीड़ा हो रही थी और बार-बार मूर्च्छा हो रही थी; इसलिए विश्वकर्मा ने सब अंग तो ठीक कर दिए, पर पैरों की अंगुलियों को छोड़ दिया।
तब सूर्य देव ने कहा—‘आपने तो अपना कार्य पूर्ण कर लिया, परन्तु हम पीड़ा से व्याकुल हो रहे हैं, इसका कोई उपाय बताइए।’
विश्वकर्मा ने कहा—‘आप रक्त चंदन और कनेर के पुष्पों का संपूर्ण शरीर में लेप करें, इससे तत्काल यह पीड़ा शांत हो जाएगी ।’
भगवान सूर्य ने विश्वकर्मा के कथनानुसार अपने सारे शरीर में इनका लेप किया, जिससे उनकी सारी वेदना मिट गयी । उसी दिन से लाल चंदन और कनेर (करवीर) के पुष्प भगवान सूर्य को अत्यंत प्रिय हो गए और उनकी पूजा में प्रयुक्त होने लगे।
यह रचना मेरी नहीं है मगर मुझे अच्छी लगी तो आपके साथ शेयर करने का मन हुआ।🙏🏻
![गिरीश](https://secure.gravatar.com/avatar/547098b06209946fe0b690a2de6f601d?s=96&r=g&d=https://rpsnews.com/wp-content/plugins/userswp/assets/images/no_profile.png)