December 11, 2024 10:30 am
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बीज मंत्र क्या है ?

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|| बीज मंत्र ||
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बीज मंत्र क्या है ?
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बीज मंत्र पूरे मंत्र का एक छोटा रूप होता है जैसे की एक बीज बोने से पेड़ निकलता है उसी प्रकार बीज मंत्र का जाप करने से हर प्रकार की समस्या का समाधान हो जाता हैं. अलग- अलग भगवान का बीज मंत्र जपने से इंसान में ऊर्जा का प्रवाह होता हैं और आप भगवान की छत्र-छाया में रहते हैं I
मूल बीज मंत्र “ॐ” होता है जिसे आगे कई अलग बीज में बांटा जाता है I
ये सब बीज इस प्रकार जापे जाते हैं- ॐ, क्रीं, श्रीं, ह्रौं, ह्रीं, ऐं, गं, फ्रौं, दं, भ्रं, धूं,हलीं, त्रीं,क्ष्रौं, धं,हं,रां, यं, क्षं, तं.I

ऋषिओ के अनुसार यह “मंत्र का बीज” होता है । यह बीज मंत्र के विज्ञान को तेजी से फैलाता है । ऋषिओ का मानना हे की किसी भी मंत्र की शक्ति उसके ‘बीज’ में होती है । जब भी हम मंत्र का जप करते हैं वह तभी प्रभावशाली होता है जब उसे हम योग्य बीज चुन कर करते हैं । मानना हे की बीज मंत्र के देवता की शक्ति को जागृत करता है । प्रत्येक बीजमंत्र में अक्षर समूह होते हैं ।

विभिन्न बीज मंत्र इस प्रकार हैं :
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बीज मंत्र तीन प्रकार के होते हैं :-

1. मौलिक बीज मंत्र : जब बीजाक्षर अपने मूल रूप में रहता है, तब मौलिक बीज कहलाता है, जैसे – अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋृं लृं लॄं एं ऐं ओं औं अं अः कं खं गं घं ङं चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं !! आदि..I
2. यौगिक बीज मंत्र : जब यह बीजाक्षर दो वर्षो के योग से बनता है, तब यौगिक कहलाता है, जैसे – ह्रां ह्रीं ह्रौं श्रां श्रीं श्रौं ग्रां ग्रीं ग्रौं क्रां क्रीं क्रौं क्लृ ब्रां ब्रीं ब्रौं प्रां प्रीं प्रौं भ्रां भ्रीं भ्रौं स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं द्रा द्रीं द्रूं द्रः क्षां क्षीं क्षूं क्षें क्षैं क्षों क्षौं क्षः ब्लूं !! आदि…I
3. कूट बीज मंत्र : इसी तरह जब बीजाक्षर तीन या उससे अधिक वर्षो से बनता है, तब यह कूट बीज कहलाता है… बीज मंत्रों में समग्र शक्ति विद्यमान होते हुए भी गुप्त रहती है..नाम मंत्र -बीज रहित मंत्रों को नाम मंत्र कहते हैं, जैसे –
”ॐ नम: शिवाय”, “ऊँ नमो नारायणाय”, ”ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”, “ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभयो नमः” एवं || ॐ ऐं भ्रीम हनुमते, श्री राम दूताय नम: || !! आदि..I

बीजाक्षरों का वर्णन निम्न प्रकार किया गया है:
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बीजाक्षरों की उत्पत्ति प्रधानतः णमोकार मन्त्र से ही हुई है क्योंकि मातृका ध्वनियाँ इसी मन्त्र से उद्भूत हैं। इन सबमें प्रधान ‘ओं’ बीज है, यह आत्मवाचक मूलभूत है। इसे तेजोबीज, कामबीज और भवबीज माना गया है। पंचपरमेष्ठी वाचक होने से ओं को समस्त मन्त्रों का सारतत्व बताया गया है। इसे प्रणववाचक भी कहा जाता है। श्रीं को कीर्तिवाचक, हृीं को कल्याणवाचक, क्षीं को शान्तिवाचक, हं को मंगलवाचक, ऊँ को सुखवाचक, क्ष्वीं को योगवाचक, ह्नं को विद्वेष और रोषवाचक, प्रीं प्रीं को स्तम्भनवाचक और क्लीं को लक्ष्मीप्राप्तिवाचक कहा गया है। सभी तीर्थंकरों के नामाक्षरों को मंगलवाचक एवं यक्ष-यक्षिणियों के नामों को कीर्ति और प्रीतिवाचक कहा गया है।

बीजाक्षरों का वर्णन निम्न प्रकार किया गया है :-
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|| ऊँ प्रणवध्रुवं ब्रह्मबीजं, तेजोबीजं व, ओं तेजोबीजं, ऐं वाग्भवबीजं, लृं कामबीजं, क्रीं शक्तिबीजं, हं सः विषापहारबीजं, क्षीं पृथ्वीबीजं, स्वा वायुबीजं, हा आकाशबीजं, हां मायाबीजं त्रैलोक्यनाथबीजं वा, क्रों अंकुशबीजं जं पाशबीजं, फट् विसर्जनं चालनं वा, वौषट् पूजाग्रहणं आकर्षण वा; संवौषट् आमन्त्रणम्, वलूं द्रावणं, क्लूं आकर्षणं, गलौं स्तम्भनं, ह्नीं महाशक्तिः, वषट् आवाहनं, रं ज्वलनं, क्ष्वीं विषापहारबीजं, ठः चन्द्रबीजं, घे घै ग्रहणबीजं, वैविबन्धो वा; द्रा द्रां क्लीं ब्लूं सः पंचवाणी, द्रं विद्वेषणं रोषबीजं वा, स्वाहा शान्तिकं मोहकं वा, स्वधा पौष्टिकं, नमः शोधनबीजं, हं गगनबीजं, ह्नं ज्ञानबीजं, यः विसर्जनबीजं उच्चारणं वा, यं वायुबीजं, जुं विद्वेषणबीजं, इवीं अमृतबीजं, क्ष्वीं भोगबीजं, हूं दण्डबीजम्, खः स्वादनबीजं, झ्रौं महाशक्तिबीजं, ह्ल्वर्यूं पिण्डबीजं, र्हं मंगलबीजं सुखबीजं वा, श्रीं कीर्तियबींज कल्याणबीजं वा, क्लीं धनबीजं कुबेरबीजं वा तीर्थंकरनामाक्षरशान्तिबीजं मांगल्यबींज कल्याणबीजं विघ्नविनाशकबीजं वा, अं काआशबीजं धान्यबींज वा, अ सुखबीजं तेजोबीजं वा, ई गुणबीजं तेजोबीजं वा, उ वायुबीजं, क्षां क्षीं क्षूं क्षें क्षैं क्षौं क्षः रक्षाबीजं, सर्वकल्याणबीजं सर्वशुद्धिबींज वा, वं द्रवणबीजं, य मंगलबीजं, शोधनबीजं, यं रक्षाबीज, झं शक्तिबीजं तं थं दं कालुष्यनाशक मंगलवर्धकं च।-बीजकोश। ||

मन्त्रशास्त्र के बीजों का विवेचन करने के उपरान्त आचार्यों ने उनके रूप का निरूपण करते हुए बतालाया है कि :–
i) अ आ ऋ ह श य क ख ग ध ड ये वर्ण वायुतत्त्व संज्ञक;
ii) च छ ज झ ´ इ ई ऋ अ र ष ये वर्ण अग्नितत्त्व संज्ञक;
iii) त ट द उ उ ऊ ण लृ व ल ये वर्ण पृथ्वी संज्ञक;
iv) ठ थ ध ढ़ न ए ऐ लृ स ये वर्ण जलतत्त्व संज्ञक एवं
v) प फ ब भ म ओ और अं अः आकाशतत्त्व संज्ञक हैं।
vi) अ उ ऊ ऐ ओ औ अं क ख ग ट ठ ड ढ त थ प फ ब ज झ ध य स ष क्ष ये वर्ण पुल्लिग;
vii) ऐ ओ और अं क ख ग अ ठ ड़ ढ़ त थ प फ ब ज झ ध य स ष क्ष ये वर्ण पुल्लिंग;
viii) आ ई च छ ल व वर्ण स्त्रीलिंग और
ix) इ ऋ ऋृ लृ लृ ए अः घ भ य र ह द ´ ण ड़ ये वर्ण नपुंसक लिंग संज्ञक होते हैं।

|| मन्त्रशास्त्र में स्वर और ऊष्म ध्वनियाँ ब्राह्मण वर्ण संज्ञक;
अत्त्स्थ और कबर्ग ध्वनियों शुद्रवर्ण -संज्ञक होती है। ||

लिंगों के अनुसार मंत्रों के तीन भेद होते हैं :-
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पुर्लिंग :- जिन मंत्रों के अंत में हूं या फट लगा होता है I
स्त्रीलिंग :- जिन मंत्रों के अंत में ‘स्वाहा’ का प्रयोग होता है I
नपुंसक लिंग :- जिन मंत्रों के अंत में ‘नमः’ प्रयुक्त होता है I
अतः आवश्यकतानुसार मंत्रों को चुनकर उनमें स्थित अक्षुण्ण ऊर्जा की तीव्र विस्फोटक एवं प्रभावकारी शक्ति को प्राप्त किया जा सकता है I

|| इन बीजाक्षर मंत्रों के शब्द उनके देवता, उनके रूप एवं उनकी शक्ति को अभिव्यक्ति देने में समर्थ होते हैं I ॐ – “परमपिता परमेश्वर” की शक्ति का प्रतीक है I ह्रीं- माया बीज I श्रीं- लक्ष्मी बीज I क्रीं- काली बीज I ऐं- सरस्वती बीज I
क्लीं- कृष्ण बीज I ||

बीज मंत्र :-
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[1] भगवान श्री गणेश का बीज मंत्र :-
सभी देवों में सबसे पहले पूजे जाने वाले देव श्री गणेश का बीज मंत्र ” गं ” है | इस बीज मंत्र के नियमित जप से बुद्धि का विकास होता है और घर में धन संपदा की वृद्धि होती है |

[2] भगवान शिव का बीज मंत्र :-
भगवान शिव का बीज मंत्र है : – ” ह्रौं ” भगवान शिव के इस बीज मंत्र के जप से भोलेनाथ अतिशीघ्र प्रसन्न होते है | इस बीज मंत्र के प्रभाव से अकाल मृत्यु से रक्षा होती है व रोग आदि से छुटकारा मिलता है |

[3] भगवान श्री विष्णु का बीज मंत्र :-
भगवान श्री विष्णु का बीज मंत्र ” दं ” है | जीवन में हर प्रकार के सुख और एश्वर्य की प्राप्ति हेतु इस बीज मंत्र द्वारा भगवान श्री विष्णु की आराधना करनी चाहिए |

[4] भगवान श्री राम का बीज मंत्र :-
भगवान श्री राम का बीज मंत्र ” रीं ” है जिसे भगवान श्री राम के मंत्र के शुरू में प्रयोग करने से मंत्र की प्रबलता और भी अधिक हो जाती है भगवान श्री राम के बीज मंत्र/Beej Mantra को इस प्रकार से प्रयोग कर सकते है : रीं रामाय नमः

[5] हनुमान जी का बीज मंत्र :-
भगवान श्री राम के परम भक्त हनुमान जी आराधना कलियुग के समय में शीघ्र फल प्रदान करने वाली है | ऐसे में बीज मंत्र द्वारा उनकी आराधना आपके सभी दुखों को हरने में सक्षम है | हनुमान जी का बीज मंत्र है : ” हं ” |

[6] भगवान श्री कृष्ण का बीज मंत्र :-
भगवान श्री कृष्ण का बीज मंत्र “ क्लीं ” है जिसका उच्चारण अकेले भी किया जा सकता है व भगवान श्री कृष्ण के वैदिक मंत्र के साथ भी | इस बीज मंत्र का प्रयोग इस प्रकार से करें : ” क्लीं कृष्णाय नमः ” |

[7] माँ दुर्गा का बीज मंत्र :-
शक्ति स्वरुप माँ दुर्गा का बीज मंत्र ” दूं ” जिसका अर्थ है : हे माँ, मेरे सभी दुखों को दूर कर मेरी रक्षा करो |

[8] माँ काली का बीज मंत्र :-
जीवन से सभी भय , ऊपरी बाधाओं , शत्रुओं के छूटकारा दिलाने में माँ काली के बीज मंत्र द्वारा उनकी आराधना विशेष रूप से लाभ प्रदान करने वाली है | माँ काली का बीज मंत्र है : ” क्रीं ” |

[9] देवी लक्ष्मी का बीज मंत्र :-
देवी लक्ष्मी को स्वाभाव से चंचल माना गया है इसलिए वे अधिक समय के लिए एक स्थान पर नहीं रूकती | घर में धन-सम्पति की वृद्धि हेतु माँ लक्ष्मी के इस बीज मंत्र द्वारा आराधना से लाभ अवश्य प्राप्त होता है | देवी लक्ष्मी का बीज मंत्र है : ” श्रीं ” |

[10] देवी सरस्वती का बीज मंत्र : –
माँ सरस्वती विद्या को देने वाली देवी है जिनका बीज मंत्र ” ऐं ” है | परीक्षा में सफलता के लिए व हर प्रकार के बौद्धिक कार्यों में सफलता हेतु माँ सरस्वती के इस बीज मंत्र का जप प्रभावी सिद्ध होता है |

परमपिता परमेश्वर ब्रह्म का बीज मंत्र :-
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कुछ बीज म ऐसे भी है जो सूचक है उस परमपिता परमेश्वर के जो समस्त ब्रम्हांड के रचियता , पालनकर्ता और रक्षक है | ये बीज मंत्र इस प्रकार है : ” ॐ ” खं ” कं ” | ये तीनों बीज मंत्र ब्रह्म वाचक है |

(1) “गं” गणेश बीज :
यह गणपति का बीज मंत्र है। विघ्नों को दूर करने तथा धन-संपदा की प्राप्ति के लिए पीले रंग के आसन पर उत्तराभिमुख बैठकर रुद्राक्ष की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है ||

(2) “ऐं” सरस्वती बीज :
यह मां सरस्वती का बीज मंत्र है, इसे वाग् बीज भी कहते हैं। जब बौद्धिक कार्यों में सफलता की कामना हो, तो यह मंत्र उपयोगी होता है। जब विद्या, ज्ञान व वाक् सिद्धि की कामना हो, तो श्वेत आसान पर पूर्वाभिमुख बैठकर स्फटिक की माला से नित्य इस बीज मंत्र का एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है ||

(3) “ह्रीं” भुवनेश्वरी बीज :
यह मां भुवनेश्वरी का बीज मंत्र है। इसे माया बीज कहते हैं। जब शक्ति, सुरक्षा, पराक्रम, लक्ष्मी व देवी कृपा की प्राप्ति हो, तो लाल रंग के आसन पर पूर्वाभिमुख बैठकर रक्त चंदन या रुद्राक्ष की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है ||

(4) “क्लीं” काम बीज :
यह कामदेव, कृष्ण व काली इन तीनों का बीज मंत्र है। जब सर्व कार्य सिद्धि व सौंदर्य प्राप्ति की कामना हो, तो लाल रंग के आसन पर पूर्वाभिमुख बैठकर रुद्राक्ष की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है ||

(5) “श्रीं” लक्ष्मी बीज :
यह मां लक्ष्मी का बीज मंत्र है। जब धन, संपत्ति, सुख, समृद्धि व ऐश्वर्य की कामना हो, तो लाल रंग के आसन पर पश्चिम मुख होकर कमलगट्टे की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है ||

(6) “ह्रौं” शिव बीज :
यह भगवान शिव का बीज मंत्र है। अकाल मृत्यु से रक्षा, रोग नाश, चहुमुखी विकास व मोक्ष की कामना के लिए श्वेत आसन पर उत्तराभिमुख बैठकर रुद्राक्ष की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है ||

(7) “श्रौं” नृसिंह बीज :
यह भगवान नृसिंह का बीज मंत्र है। शत्रु शमन, सर्व रक्षा बल, पराक्रम व आत्मविश्वास की वृद्धि के लिए लाल रंग के आसन पर दक्षिणाभिमुख बैठकर रक्त चंदन या मूंगे की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है ||

(8) “क्रीं” काली बीज :
यह काली का बीज मंत्र है। शत्रु शमन, पराक्रम, सुरक्षा, स्वास्थ्य लाभ आदि कामनाओं की पूर्ति के लिए लाल रंग के आसन पर उत्तराभिमुख बैठकर रुद्राक्ष की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है ||

(9) “दं” विष्णु बीज :
यह भगवान विष्णु का बीज मंत्र है। धन, संपत्ति, सुरक्षा, दांपत्य सुख, मोक्ष व विजय की कामना हेतु पीले रंग के आसन पर पूर्वाभिमुख बैठकर तुलसी की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है ||

|| नवग्रहों के बीज मंत्र ||
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सूर्य : ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:
चन्द्र : ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चन्द्राय नम:
गुरू : ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:
शुक्र : ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम:
मंगल : ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:
बुध : ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम:
शनि : ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम:
राहु : ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:
केतु : ॐ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं स: केतवे नम:

||नवदुर्गा के बीज मंत्र ||
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1. शैलपुत्री – ह्रीं शिवायै नम:।
2. ब्रह्मचारिणी ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:।
3. चन्द्रघण्टा ऐं श्रीं शक्तयै नम:।
4. कूष्मांडा ऐं ह्री देव्यै नम:।
5. स्कंदमाता ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:।
6. कात्यायनी क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम:।
7. कालरात्रि क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:।
8. महागौरी श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:।
9. सिद्धिदात्री ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:।

|| राशि बीज मंत्र ||
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1. Mesh Rashi (Aries) – ॐ ऎं क्लीं सौः |
2. Vrishabha Rashi (Taurus) – ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं |
3. Mithun Rashi (Gemini) – ॐ श्रीं ऎं सौः |
4. Karkata Rashi (Cancer) – ॐ ऎं क्लीं श्रीं |
5. Simha Rashi (Leo) – ॐ ह्रीं श्रीं सौः |
6. Kanya Rashi (Virgo) – ॐ श्रीं ऎं सौः |
7. Tula Rashi (Libra) – ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं |
8. Vrishchik Rashi (Scorpio) – ॐ ऎं क्लीं सौः |
9. Dhanusha Rashi (Sagittarius) – ॐ ह्रीं क्लीं सौः |
10. Makara Rashi (Capricorn) – ॐ ऎं क्लीं ह्रीं श्रीं सौः |
11. Kumbha Rashi (Aquarius) – ॐ ह्रीं ऎं क्लीं श्रीं |
12. Meena Rashi (Pisces) – ॐ ह्रीं क्लीं सौः |

चमत्कारी बीज मंत्रों के लाभ :
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चमत्कारी मंत्रों का जाप करने के कई तरह के लाभ होते हैं जैसे –
(1 दीर्घायु : व्यक्ति को लम्बी आयु की प्राप्ति होती हैं.
(2) धन : व्यक्ति को धन की प्राप्ति होती है.
(3) परिवार का सुख : व्यक्ति पारिवारिक सुखों से तृप्त होता है.
(4) शत्रु का नाश : व्यक्ति की शत्रु पर जीत होती है.
(5) जीवन शांति : व्यक्ति जीवन में शांति का अनुभव करता हैं.

बीज मंत्र जप के लाभ :-

बीज मंत्रों के जप से देवी-देवता अति शीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्त का उद्धार करते है | बीज मंत्रों का उच्चारण आपके आस-पास एक सकारात्मक उर्जा का संचार करता है | जीवन में आने वाले घोर से घोर संकट भी बीज मंत्रों के उच्चारण से दूर हो जाते है | किसी भी प्रकार के असाध्य रोग की गिरफ्त में आने पर , आर्थिक संकट आने पर, इनके अतिरिक्त समस्या कोई भी हो, बीज मंत्रों के जप से लाभ अवश्य प्राप्त होता है | बीज मंत्रों के नियमित जप से सभी पापों से मुक्ति मिलती है | ऐसा व्यक्ति सम्पूर्ण जीवन मृत्यु के भय से मुक्त होकर जीता है व अंत में मोक्ष को प्राप्त करता है ||

|| शरीर के सात चक और उनके बीज मंत्र ||
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[1] मूलाधार चक्र : बीज मंत्र : ” लं ”
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चक्र के देवता- भगवान गणेश
चक्र की देवी – डाकिनी जिसके चार हाँथ हैं, लाल आँखे हैं।
तत्व – पृथ्वी
रंग – गहरा लाल
बीज मंत्र – ‘ लं ‘
यह शरीर का पहला चक्र है। गुदा और लिंग के बीच 4 पंखुरियों वाला यह ‘आधार चक्र’ है। 99.9% लोगों की चेतना इसी चक्र पर अटकी रहती है और वे इसी चक्र में रहकर मर जाते हैं। जिनके जीवन में भोग, संभोग और निद्रा की प्रधानता है उनकी ऊर्जा इसी चक्र के आसपास एकत्रित रहती है।

चक्र जगाने की विधि : मनुष्य तब तक पशुवत है, जब तक कि वह इस चक्र में जी रहा है इसीलिए भोग, निद्रा और संभोग पर संयम रखते हुए इस चक्र पर लगातार ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है। इसको जाग्रत करने का दूसरा नियम है- यम और नियम का पालन करते हुए साक्षी भाव में रहना।

प्रभाव : इस चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रत हो जाता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए वीरता, निर्भीकता और जागरूकता का होना जरूरी है।

[2] स्वाधिष्ठान चक्र : बीज मंत्र : ” वं ”
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चक्र के देवता- भगवान विष्णु
वस्त्र चमकदार सुन्दर पिला रंग
चक्र की देवी- देवी राकनी ( वनस्पति की देवी ) नीले कमल की तरह
तत्व – जल
रंग – सिंदूरी, कला, सफ़ेद
बीज मंत्र – ‘ वं ‘
यह वह चक्र है, जो लिंग मूल से 4 अंगुल ऊपर स्थित है जिसकी 6 पंखुरियां हैं। अगर आपकी ऊर्जा इस चक्र पर ही एकत्रित है तो आपके जीवन में आमोद-प्रमोद, मनोरंजन, घूमना-फिरना और मौज-मस्ती करने की प्रधानता रहेगी। यह सब करते हुए ही आपका जीवन कब व्यतीत हो जाएगा आपको पता भी नहीं चलेगा और हाथ फिर भी खाली रह जाएंगे।

कैसे जाग्रत करें : जीवन में मनोरंजन जरूरी है, लेकिन मनोरंजन की आदत नहीं। मनोरंजन भी व्यक्ति की चेतना को बेहोशी में धकेलता है। फिल्म सच्ची नहीं होती लेकिन उससे जुड़कर आप जो अनुभव करते हैं वह आपके बेहोश जीवन जीने का प्रमाण है। नाटक और मनोरंजन सच नहीं होते।

प्रभाव : इसके जाग्रत होने पर क्रूरता, गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास आदि दुर्गणों का नाश होता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि उक्त सारे दुर्गुण समाप्त हों तभी सिद्धियां आपका द्वार खटखटाएंगी।

[3] मणिपुर चक्र : बीज मंत्र : ” रं ”
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देवता- रूद्र तीन आँखों वाले सरीर में विभूति सिंदूरी वर्ण
देवी- लाकिनी सब का उपकार करने वाली रंग काला वस्त्र पिले हैं देवी आभूषण से सजी अमृतपान के कारण आनंदमय हैं।
तत्व- अग्नि
रंग- पीला
बीज मंत्र- ‘ रं ‘
नाभि के मूल में स्थित यह शरीर के अंतर्गत मणिपुर नामक तीसरा चक्र है, जो 10 कमल पंखुरियों से युक्त है। जिस व्यक्ति की चेतना या ऊर्जा यहां एकत्रित है उसे काम करने की धुन-सी रहती है। ऐसे लोगों को कर्मयोगी कहते हैं। ये लोग दुनिया का हर कार्य करने के लिए तैयार रहते हैं।

कैसे जाग्रत करें : आपके कार्य को सकारात्मक आयाम देने के लिए इस चक्र पर ध्यान लगाएंगे। पेट से श्वास लें।

प्रभाव : इसके सक्रिय होने से तृष्णा, ईर्ष्या, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह आदि कषाय-कल्मष दूर हो जाते हैं। यह चक्र मूल रूप से आत्मशक्ति प्रदान करता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए आत्मवान होना जरूरी है। आत्मवान होने के लिए यह अनुभव करना जरूरी है कि आप शरीर नहीं, आत्मा हैं। आत्मशक्ति, आत्मबल और आत्मसम्मान के साथ जीवन का कोई भी लक्ष्य दुर्लभ नहीं।

[4] अनाहत चक्र : बीज मंत्र : ” यं ”
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देवता – ईश् श्री जगदम्बा ( शिव-शक्ति )
देवी- काकनी सर्वजन हितकारी देवी का रंग पीला है, तीन आँखे हैं चार हाँथ हैं।
रंग- हरा, नीला, चमकदार, किरमिजी
तत्व- वायु
बीज मंत्र- ‘ यं ‘
हृदयस्थल में स्थित द्वादश दल कमल की पंखुड़ियों से युक्त द्वादश स्वर्णाक्षरों से सुशोभित चक्र ही अनाहत चक्र है। अगर आपकी ऊर्जा अनाहत में सक्रिय है तो आप एक सृजनशील व्यक्ति होंगे। हर क्षण आप कुछ न कुछ नया रचने की सोचते हैं। आप चित्रकार, कवि, कहानीकार, इंजीनियर आदि हो सकते हैं।

कैसे जाग्रत करें : हृदय पर संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है। खासकर रात्रि को सोने से पूर्व इस चक्र पर ध्यान लगाने से यह अभ्यास से जाग्रत होने लगता है और सुषुम्ना इस चक्र को भेदकर ऊपर गमन करने लगती है।

प्रभाव : इसके सक्रिय होने पर लिप्सा, कपट, हिंसा, कुतर्क, चिंता, मोह, दंभ, अविवेक और अहंकार समाप्त हो जाते हैं। इस चक्र के जाग्रत होने से व्यक्ति के भीतर प्रेम और संवेदना का जागरण होता है। इसके जाग्रत होने पर व्यक्ति के समय ज्ञान स्वत: ही प्रकट होने लगता है। व्यक्ति अत्यंत आत्मविश्वस्त, सुरक्षित, चारित्रिक रूप से जिम्मेदार एवं भावनात्मक रूप से संतुलित व्यक्तित्व बन जाता है। ऐसा व्यक्ति अत्यंत हितैषी एवं बिना किसी स्वार्थ के मानवता प्रेमी एवं सर्वप्रिय बन जाता है।

[5] विशुद्ध चक्र : बीज मंत्र : ” हं ”
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देवता – सदाशिव रंग सफेद, तीन आँखे, पञ्च मुख, दस भुजाएं
देवी – सकिनी वस्त्र पिले चन्द्रमां के सागर से भी पवित्र तत्व
रंग – बैगनी
तत्व- आकाश
बीज मंत्र – ‘ हं ‘
कंठ में सरस्वती का स्थान है, जहां विशुद्ध चक्र है और जो 16 पंखुरियों वाला है। सामान्य तौर पर यदि आपकी ऊर्जा इस चक्र के आसपास एकत्रित है तो आप अति शक्तिशाली होंगे।

कैसे जाग्रत करें : कंठ में संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है।

प्रभाव : इसके जाग्रत होने कर 16 कलाओं और 16 विभूतियों का ज्ञान हो जाता है। इसके जाग्रत होने से जहां भूख और प्यास को रोका जा सकता है वहीं मौसम के प्रभाव को भी रोका जा सकता है।

[6] आज्ञाचक्र : बीज मंत्र : ह और क्ष
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आत्मा और परमात्मा ( स्व और ईश्वर )
रंग – सफेद
बीज मंत्र – ‘ ॐ ‘
तत्व – मन का तत्व ( अनुपद तत्व )
भ्रूमध्य (दोनों आंखों के बीच भृकुटी में) में आज्ञा चक्र है। सामान्यतौर पर जिस व्यक्ति की ऊर्जा यहां ज्यादा सक्रिय है तो ऐसा व्यक्ति बौद्धिक रूप से संपन्न, संवेदनशील और तेज दिमाग का बन जाता है लेकिन वह सब कुछ जानने के बावजूद मौन रहता है। इसे बौद्धिक सिद्धि कहते हैं।

कैसे जाग्रत करें : भृकुटी के मध्य ध्यान लगाते हुए साक्षी भाव में रहने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है।

प्रभाव : यहां अपार शक्तियां और सिद्धियां निवास करती हैं। इस आज्ञा चक्र का जागरण होने से ये सभी शक्तियां जाग पड़ती हैं और व्यक्ति सिद्धपुरुष बन जाता है।

[7] सहस्रार चक्र : बीज मंत्र : ” ॐ ”
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भगवान – शंकर
रंग – बैंगनी
बीज मंत्र – ‘ ॐ ‘
तत्व – सर्व तत्व ( आत्म तत्व )
सहस्रार = हजार , असंख्य, अनंत
सहस्रार की स्थिति मस्तिष्क के मध्य भाग में है अर्थात जहां चोटी रखते हैं। यदि व्यक्ति यम, नियम का पालन करते हुए यहां तक पहुंच गया है तो वह आनंदमय शरीर में स्थित हो गया है। ऐसे व्यक्ति को संसार, संन्यास और सिद्धियों से कोई मतलब नहीं रहता है।

कैसे जाग्रत करें : मूलाधार से होते हुए ही सहस्रार तक पहुंचा जा सकता है। लगातार ध्यान करते रहने से यह चक्र जाग्रत हो जाता है और व्यक्ति परमहंस के पद को प्राप्त कर लेता है।

प्रभाव : शरीर संरचना में इस स्थान पर अनेक महत्वपूर्ण विद्युतीय और जैवीय विद्युत का संग्रह है। यही मोक्ष का द्वार है।
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बीजाक्षरों का संक्षिप्त कोष :——
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ऊँ—प्रणव, ध्रव, तैजस बीज है।
ऐं—वाग् और तत्त्व बीज है।
क्लीं—काम बीज है।
हो—शासन बीज है।
क्षि—पृथ्वी बीज है।
प—अप् बीज है।
स्वा—वायु बीज है।
हा:—आकाश बीज है।
ह्रीं—माया और त्रैलोक्य बीज है।
क्रों—अंकुश और निरोध बीज है।
आ—फास बीज है।
फट्—विसर्जन और चलन बीज है।
वषट्—दहन बीज है।
वोषट्—आकर्षण और पूजा ग्रहण बीज है।
संवौषट्—आकर्षण बीज है।
ब्लूँ—द्रावण बीज है।
ब्लैं—आकर्षण बीज है।
ग्लौं—स्तम्भन बीज है।
क्ष्वीं—विषापहार बीज है।
द्रां द्रीं क्लीं ब्लूँ स:—ये पांच बाण बीज हैं।
हूँ—द्वेष और विद्वेषण बीज है।
स्वाहा—हवन और शक्ति बीज है।
स्वधा—पौष्टिक बीज है।
नम:—शोधन बीज है।
श्रीं—लक्ष्मी बीज है।
अर्हं—ज्ञान बीज है।
क्ष: फट्—शस्त्र बीज है।
य:—उच्चाटन और विसर्जन बीज है।
जूँ—विद्वेषण बीज है।
श्लीं—अमृत बीज है।
क्षीं—सोम बीज है।
हंव—विष दूर करने वाला बीज है।
क्ष्म्ल्व्र्यूं— पिंड बीज है।
क्ष—कूटाक्षर बीज है।
क्षिप ऊँ स्वाहा—शत्रु बीज है।
हा:—निरोध बीज है।
ठ:—स्तम्भन बीज है।
ब्लौं—विमल पिंड बीज है।
ग्लैं—स्तम्भन बीज है।
घे घे—वद्य बीज है।
द्रां द्रीं—द्रावण संज्ञक है।
ह्रीं ह्रूँ ह्रैं ह्रौ ह्र:—शून्य रूप बीज हैं।
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गिरीश
Author: गिरीश

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