July 27, 2024 4:21 am
Search
Close this search box.
Search
Close this search box.

हमारा ऐप डाउनलोड करें

*तिलक लगाने के बाद चावल के दाने लगाने का रहस्य*

👇खबर सुनने के लिए प्ले बटन दबाएं

===.
*तिलक लगाने के बाद चावल के दाने लगाने का रहस्य*
======


*ये तो आपने अक्सर देखा होगा, कि जब आपके घर में कोई त्यौहार, शादी या पूजा का समय होता है, तो इसकी शुभ शुरुआत व्यक्ति को तिलक लगा कर की जाती है. जी हां ये तो सब को मालूम है कि पूजा के दौरान व्यक्ति को तिलक लगाया जाता है, क्यूकि तिलक लगाना शुभ माना जाता है. मगर क्या आपने कभी ये सोचा है कि तिलक लगाने के बाद व्यक्ति के माथे पर चावल क्यों लगाए जाते है. यकीनन आपको कभी ये सोचना की जरूरत ही नहीं पड़ी होगी. हालांकि आज हम आपको ये बताएंगे कि तिलक लगाने के बाद उसके ऊपर चावल क्यों लगाए जाते है. गौरतलब है कि पूजा के दौरान माथे पर कुमकुम का तिलक लगाते समय चावल के दाने भी ललाट पर जरूर लगाए जाते है।*

*ऐसा क्यों किया जाता है, इसके पीछे की वजह भी आज हम आपको विस्तार से बताते है. अगर वैज्ञानिक दृष्टि की बात करे तो माथे पर तिलक लगाने से दिमाग में शांति और शीतलता बनी रहती है. इसके इलावा चावल को शुद्धता का प्रतीक माना जाता है. वही अगर शास्त्रों की बात करे तो चावल को हविष्य यानि हवन में देवी देवताओ को चढ़ाने वाला शुद्ध अन्न माना जाता है। एक और मान्यता के अनुसार चावल का एक अन्य नाम अक्षत भी है इसका अर्थ कभी क्षय ना होने वाला या जिसका कभी नाश नही होता है। तभी तो हम हर खास मौके पर चावल जरूर बनाते है. दरअसल ऐसा माना जाता है कि कच्चे चावल व्यक्ति को सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करते है. यही वजह है कि पूजा के दौरान न केवल माथे पर तिलक लगाया जाता है, बल्कि पूजा की विधि संपन्न करने के लिए भी चावलों का इस्तेमाल किया जाता है।*

*आपने अक्सर देखा होगा कि पूजा में तिलक और पुष्प के साथ कुछ मीठा और चावल जरूर होते है. वो इसलिए क्यूकि पूजा की विधि बिना चावलों के पूरी नहीं हो सकती. यही वजह है कि चावलों को शुद्धता का प्रतीक माना जाता है और इसे माथे पर तिलक के साथ लगाया जाता है. इसके इलावा पूजा में भी कुमकुम के तिलक के ऊपर चावल के दाने इसलिए लगाए जाते है, ताकि हमारे आस पास जो नकारात्मक ऊर्जा है, वो दूर जा सके या खत्म हो सके. जी हां इसे लगाने का उद्देश्य यही होता है कि वो नकारात्मक ऊर्जा वास्तव में सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित हो सके।*

*इसे पढ़ने के बाद आप समझ गए होंगे कि माथे पर कुमकुम का तिलक लगाने के बाद उसके ऊपर चावल के दाने क्यों लगाए जाते है. हालांकि अगर आप पूजा के समय माथे पर केवल तिलक लगाते है और चावल के दानो का इस्तेमाल नहीं करते, तो यह सही नहीं है।  अगर आप ऐसा करते है, तो अब से ऐसा कभी मत कीजियेगा, क्यूकि इससे न केवल पूजा अधूरी होने का आभास होता है, बल्कि इससे नकारात्मक ऊर्जा भी आपके आस पास भटकती रहती है. इसलिए हम तो यही कहेगे कि हर पूजा में चावलों का खास महत्व है. ऐसे में आपको चावलों का इस्तेमाल करना कभी नहीं भूलना चाहिए। इस जानकारी को पढ़ने के बाद आपको चावलों का महत्व पूरी तरह से समझ आ गया होगा।*

*तिलक लगवाते समय सिर पर हाथ क्यों रखते हैं ?*
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
*तिलक बिना लगाएं हिन्दू मान्यताओं के अनुसार कोई भी पूजा-प्रार्थना नहीं होती। सूने मस्तक को अशुभ माना जाता है। तिलक लगाते समय सिर पर हाथ रखना भी हमारी एक परंपरा है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इसका कारण क्या है?*
*दरअसल धर्म शास्त्रों के अनुसार सूने मस्तक को अशुभ और असुरक्षित माना जाता है। तिलक लगाने के लिए अनामिका अंगुली शांति प्रदान करती है। मध्यमा अंगुली मनुष्य की आयु वृद्धि करती है। अंगूठा प्रभाव और ख्याति तथा आरोग्य प्रदान कराता है। इसीलिए राजतिलक* *अथवा विजय तिलक अंगूठे से ही करने की परंपरा रही है। तर्जनी मोक्ष देने वाली अंगुली है। ज्योतिष के अनुसार अनामिका तथा अंगूठा तिलक करने में सदा शुभ माने गए हैं। अनामिका सूर्य पर्वत की अधिष्ठाता अंगुली है। यह अंगुली सूर्य का प्रतिनिधित्व करती है, जिसका तात्पर्य यही है कि सूर्य के समान, दृढ़ता, तेजस्वी, प्रभाव, सम्मान, सूर्य जैसी निष्ठा-प्रतिष्ठा बनी रहे।*
*दूसरा अंगूठा है जो हाथ में शुक्र क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है। शुक्र ग्रह जीवन शक्ति का प्रतीक है। जीवन में सौम्यता, सुख-साधन तथा काम-शक्ति देने वाला शुक्र ही संसार का रचयिता है। माना जाता है कि जब अंगुली या अंगूठे से तिलक किया जाता है तो आज्ञा चक्र के साथ ही सहस्त्रार्थ चक्र पर ऊर्जा का प्रवाह होता है। सकारात्मक ऊर्जा हमारे शीर्ष चक्र पर एकत्र हो साथ ही हमारे विचार सकारात्मक हो व कार्यसिद्ध हो। इसीलिए तिलक लगावाते समय सिर पर हाथ जरूर रखना चाहिए।*

*मन्दिर में दर्शन के बाद बाहर सीढ़ी पर थोड़ी देर क्यों बैठा जाता है ?*
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
*आपने बड़े बुजुर्गो से अवश्य सुना होगा कि जब भी किसी मन्दिर में दर्शन के लिए जाएं तो दर्शन करने के बाद बाहर आकर मन्दिर की पेडी या ऑटले पर थोड़ी देर बैठते हैं । जाने इस परम्परा का क्या कारण है ?*

*आजकल तो लोग मंदिर की पैड़ी पर बैठकर अपने घर की व्यापार की राजनीति की चर्चा करते हैं परंतु यह प्राचीन परंपरा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई । वास्तव में मंदिर की पैड़ी पर बैठ कर के हमें एक श्लोक बोलना चाहिए। यह श्लोक आजकल के लोग भूल गए हैं । आप इस लोक को सुनें और आने वाली पीढ़ी को भी इसे बताएं । यह श्लोक इस प्रकार है –*

*“अनायासेन मरणम् ,बिना देन्येन जीवनम्।*
*देहान्त तव सानिध्यम्, देहि मे परमेश्वरम् ।।”*

*इस श्लोक का अर्थ है* *अनायासेन मरणम्* *अर्थात बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और हम कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर ना पड़े, कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त ना हो चलते फिरते ही हमारे प्राण निकल जाएं ।*

*बिना देन्येन जीवनम्* *अर्थात परवशता का जीवन ना हो मतलब हमें कभी किसी के सहारे ना पड़े रहना पड़े। जैसे कि लकवा हो जाने पर व्यक्ति दूसरे पर आश्रित हो जाता है वैसे परवश या बेबस ना हो । ठाकुर जी की कृपा से बिना भीख के ही जीवन बसर हो सके ।*

*देहांते तव सानिध्यम* *अर्थात जब भी मृत्यु हो तब भगवान के सम्मुख हो। जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं ठाकुर जी उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए। उनके दर्शन करते हुए प्राण निकले ।*

*देहि में परमेशवरम्* हे *परमेश्वर ऐसा वरदान हमें देना ।*

*यह प्रार्थना करें*
〰️〰️〰️〰️〰️
*गाड़ी ,लाडी ,लड़का ,लड़की, पति, पत्नी ,घर धन यह नहीं मांगना है यह तो भगवान आप की पात्रता के हिसाब से खुद आपको देते हैं । इसीलिए दर्शन करने के बाद बैठकर यह प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए । यह प्रार्थना है, याचना नहीं है । याचना सांसारिक पदार्थों के लिए होती है जैसे कि घर, व्यापार, नौकरी, पुत्र ,पुत्री, सांसारिक सुख, धन या अन्य बातों के लिए जो मांग की जाती है वह याचना है वह भीख है।*

*हम प्रार्थना करते हैं प्रार्थना का विशेष अर्थ होता है अर्थात विशिष्ट, श्रेष्ठ । अर्थना अर्थात निवेदन। ठाकुर जी से प्रार्थना करें और प्रार्थना क्या करना है ,यह श्लोक बोलना है।*

*जब हम मंदिर में दर्शन करने जाते हैं तो खुली आंखों से भगवान को देखना चाहिए, निहारना चाहिए । उनके दर्शन करना चाहिए। कुछ लोग वहां आंखें बंद करके खड़े रहते हैं । आंखें बंद क्यों करना हम तो दर्शन करने आए हैं । भगवान के स्वरूप का, श्री* *चरणों का ,मुखारविंद का, श्रंगार का, संपूर्णानंद लें । आंखों में भर ले स्वरूप को । दर्शन करें और दर्शन के बाद जब बाहर आकर बैठे तब नेत्र बंद करके जो दर्शन किए हैं उस स्वरूप का ध्यान करें ।* *मंदिर में नेत्र नहीं बंद करना । बाहर आने के बाद पैड़ी पर बैठकर जब ठाकुर जी का ध्यान करें तब नेत्र बंद करें और अगर ठाकुर जी का स्वरूप ध्यान में नहीं आए तो दोबारा मंदिर में जाएं* *और भगवान का दर्शन करें ।यह रचना मेरी नहीं है। मुझे अच्छी लगी तो आपके साथ शेयर करने का मन हुआ।🌷*

गिरीश
Author: गिरीश

Share this post:

Leave a Comment

खबरें और भी हैं...

[wonderplugin_slider id=1]

लाइव क्रिकट स्कोर

कोरोना अपडेट

Weather Data Source: Wetter Indien 7 tage

राशिफल

error: Content is protected !!
Skip to content