शिवलिंगम…
सारी समस्या संस्कृत का ज्ञान न होने से उत्पन्न हुई है। यही कारण है कि शिवलिंग के प्रति लोगो में बहुत सी गलत धारणाये फैली हुयी है! बहुत से लोगो को नहीं पता शिवलिंग आखिर है क्या लोग इसको पुरुष लिंग की तरह समझते है, इस बात पर लोगो की अधिकतर आपस में बहस भी होती रहती है! दुःख तब होता जब एक हिन्दू भी शिवलिंग क्या है ये नहीं बता पाता, ये सनातन धर्म के संस्कार न मिलने के कारण ही होता है!
शिवलिंग का अर्थ है शिव का प्रतीक, शिवलिंग भगवान शिव के निराकार रूप को दर्शाता है, सही अर्थ में शिवलिंग की पूजा ही शिव की पूजा है! आदिकाल में जब मूर्ति पूजा प्रचलन में नहीं थी तब भी शिवलिंग की पूजा की जाती थी, आज भी जितने भगवान शिव के मंदिर है वो शिवलिंग रूप में ही प्रसिद्ध है जो १२ ज्योर्लिंग इस बात के साक्ष्य है! शिव मंदिर शिवलिंग के बिना अधूरा ही है क्योकि सही मायने में तो शिवलिंग ही शिव है, जिसका ना आदि है ना अंत है! शिव जैसा तो कोई नहीं जो देव हो या दानव सबको समान रूप से देखते है तभी भोले बाबा कहलाते हैं।
शिवलिंग वातावरण सहित घूमती धरती तथा सारे अनन्त ब्रह्माण्ड (क्योंकि, ब्रह्माण्ड गतिमान है) का अक्स/धुरी (axis) ही लिंग है।
दरअसल ये गलतफहमी भाषा केरूपांतरण और, मलेच्छों द्वारा हमारे पुरातन धर्म ग्रंथों को नष्ट कर दिए जाने तथा, अंग्रेजों द्वारा इसकी व्याख्या से उत्पन्न हुआ है।
‘लिंग’: लिंग का अर्थ संस्कृत में चिन्ह प्रतीक होता है। जबकि जननेन्द्रिय को संस्कृत मे शिशिन कहा जाता है। शिवलिंग का अर्थ होता है शिव का प्रतीक। पुरुष लिंग का अर्थ हुआ पुरुष का प्रतीक, इसी प्रकार स्त्री लिंग का अर्थ हुआ स्त्री का प्रतीक और नपुंसकलिंग का अर्थ हुआ नपुंसक का प्रतीक।
जो पुरुष लिंग शब्द का अर्थ मनुष्य की जनेन्द्रिय समझ कर आलोचना करते है, वे बतायें कि “स्त्री लिंग” के अर्थ के अनुसार स्त्री का लिंग होना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं है।
शिवलिंग का सही अर्थ है शून्य,आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार। परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है।
स्कन्दपुराण में कहा गया है कि आकाश स्वयं लिंग, ‘शिवलिंग’ है, वातावरण सहित घूमती धरती तथा सारे अनन्त ब्रह्माण्ड (ब्रह्माण्ड गतिमान है) का अक्स/धुरी (Axis) ही लिंग है। शिव लिंग का अर्थ अनन्त भी होता है अर्थात जिसका न कोई अन्त है और ना ही कोई शुरुआत।
जलाधारी (अर्घा) सहित शिवलिंग का अर्थ लिंग एवं योनि नहीं होता।
ये गलतफहमी संस्कृत भाषा के शब्दो के अन्य भाषाई सीमाओं के कारण यथानुरूप भावान्तरण न कर शब्दानुवाद करने तथा अंग्रेजों द्वारा इसकी त्रुटिपूर्ण व्याख्या से उत्पन्न हुआ है।
जैसा कि हम सभी जानते है कि एक ही शब्द के विभिन्न संदर्भो में अलग अलग अर्थ निकलते हैं।
उदाहरण के लिये यदि हम हिंदी के एक शब्द “सूत्र” को ही ले लें तो, सूत्र का मतलब डोरी/धागा या गणितीय सूत्र या कोई भाष्य अथवा लेखन भी हो सकता है। जैसे कि ‘नारदीय सूत्र’ ‘ब्रह्म सूत्र’ आदि।
उसी प्रकार ‘अर्थ’ शब्द का भावार्थ ‘सपंत्ति’ भी हो सकता है और ‘मतलब’ (Meaning) भी हो सकता है। ठीक बिल्कुल उसी प्रकार शिवलिंग के सन्दर्भ में लिंग शब्द से अभिप्राय चिह्न, निशानी, गुण, व्यवहार या प्रतीक है।
धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनन्त शून्य से पैदा हो, उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा गया है। इसे कई अन्य नामो से भी संबोधित किया गया है, जैसे प्रकाश स्तंभ/लिंग, अग्नि स्तंभ/लिंग, उर्जा स्तंभ/लिंग, ब्रह्माण्डीय स्तंभ/लिंग।
ब्रह्माण्ड में दो ही चीजे है, ऊर्जा और प्रदार्थ, हमारा शरीर प्रदार्थ से निर्मित है और आत्मा ऊर्जा है। इसी प्रकार प्रकृति पदार्थ और शिव शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बन कर शिवलिंग कहलाते है।
ब्रह्मांड में उपस्थित समस्त ठोस तथा उर्जा, शिवलिंग में निहित है, वास्तव में तो शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड की आकृति ही है शिवलिंग भगवान शिव की देवी शक्ति का आदि आनादि एकल रूप है, पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतीक है। अर्थात इस संसार में न केवल पुरुष का और न ही केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व है, अर्थात दोनों ही सामान हैं।
योनि अर्थात ‘मनुष्य योनि’, ‘पशु योनि’, ‘पादप योनि’, ‘पत्थर योनि’ योनि का संस्कृत में प्रादुर्भाव ‘प्रकटीकरण’ अर्थ मे होता है।
जीव अपने कर्म के अनुसार विभिन्न योनियों में जन्म लेता है, कुछ धर्मों में पुर्नजन्म की मान्यता नहीं है, इसीलिए उन धर्मो के अनुयायी योनि शब्द के संस्कृत अर्थ को नहीं जानते है। जबकि सनातन धर्म मे ८४ लाख योनियां अर्थात ८४ लाख प्रकार के जन्म है।
अब तो यह पाश्चात्य वैज्ञानिको ने भी स्वीकार कर लिया है कि धरती मे ८४ लाख प्रकार के जीव, पेड़, कीट, जानवर, मनुष्य आदि आदि हैं।