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,,,,,,,,,,,,,,,,कहानी,,,,,,,,,,,,,,
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,,,,,,,,,,,,शबरी के राम,,,,,,,,,,,
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, जंगल में परिभ्रमण करने के पश्चात भील अपने घर में प्रवेश करता है उसकी नजर अपनी षोड़सी कन्या पर केंद्रित हो जाती है
, अब मेरी बेटी शादी के लायक हो गई है इसकी शादी करना मेरा दायित्व है कंयादान करना महान कार्य होता है इसलिए अब मेरे को कन्या दान कर देना चाहिए
, अपनी कन्या के लिए योग्य वर की खोज करना प्रारंभ कर देता है एक दिन वह भी आता हे जब उस की खोज पूरी हो जाती है 18 वर्षीय नवयुवक देखने में बहुत सुंदर और खुशहाल था उसके साथ अपने कन्या का संबंध स्थापित कर के मन में खुशियां मनाना प्रारंभ कर देता है
, शादी का दिन आता है भील समाज में यह परंपरा थी शादी से 1 दिन पूर्व जानवरों की बलि दी जाती है इसलिए भीम शाम के समय घर आते हुए सो भेड बकरियों को साथ ले आता है
, अपने घर के प्रांगण में उनको खुला छोड़ देता है पुत्री शबरी ने पूछा पिताजी इतनी सारी भीड़ बकरियां आप आज लेकर क्यों आए हैं
, पिता ने अपने पुत्री के मस्त फसाद रखते हुए कहा पुत्री कल तुम्हारी शादी है इसलिए खरीद कर इनको लाया हूं इन की बली की जाएगी इतना कहकर पिता बाहर चला जाता है
, शबरी भेड़ बकरियों के पास आकर बैठ जाती है उन से बात की करनी प्रारंभ कर देती है मन में दया करूणा के भाव जागृत होती है अब क्या करना चाहिए क्या मेरी शादी के लिए निर्दोष प्राणियों की हत्या करना उचित है वली चढ़ाना अच्छा है मन इस तरह के विचार आने प्रारंभ हो जाते हैं
, सूर्योदय से पूर्व ही शबरी अपने घर को छोड़कर जंगल की तरफ रवाना हो जाती है उसको यह भी पता था एक वार मेने कदम आगे बढ़ा दिए फिर इस घर में मेरे को स्थान मिला मुश्किल है
, चलो कम से कम मेरे घर निर्दोष प्राणियों के तो हत्या नहीं होगी अपने मन को मजबूत बना कर जंगल की तरफ रवाना हो जाती है
, महा भयानक जंगल अब रहा तू कहां रहा जाए यह प्रश्न उपस्थित होता है जंगल में बड़े-बड़े संतो के आश्रम थे उन आश्रमों में चक्कर लगाना प्रारंभ कर देती है पर भील जाती की होने के कारण उसको कोई भी संत अपने आश्रम में शरण देने के लिए तैयार नहीं होते है
, घूमते घूमते सबरी मतंग ऋषि आश्रम में पहुंच जाती है गुरु चरणों में प्रणत होते हुए निवेदन करती है गुरुदेव मेरे को भी शिक्षा प्रदान करवाएं
, शबरी की विनम्रता गुरु के मन को छू जाती है तत्काल उन्होंने अपने आश्रम स्थान प्रदान कर दिया शब्द री गंभीरता के साथ अध्यन करना प्रारंभ कर देती है सच में गुरु की सेवा अपना मुख्य केंद्र बिंदु बना लेती है
, शबरी की सेवा, आश्रम की सफाई, गौशाला के देखरेख, गायों का दूध दोहन करना , कार्य कुशलता ,सभी गुरुकुल वासियों का ध्यान रखना, भोजन बनाना ,उसका मुख्य उद्देश्य बन गया था
, शबरी के सेवा से मतंग ऋषि बहुत ज्यादा प्रभावित ओर खुश होते हैं मतंग ऋषि का शरीर जर जर हो चुका था शरीर इतना ज्यादा दुर्बल हो जाता है शबरी को अपने पास में बुलाया मस्तक पर हाथ रखकर कहा बेटी अब मैं अपना शरीर को यही छोड़ना चाहता हूं उससे पूर्व में तेरे को आशीर्वाद देना चाहता हूं बोल क्या मांगना चाहती है गुरु ने पूछा
, गुरुदेव मेरे को कुछ नहीं चाहिए आप अपने साथ मेरे को भी ले चलें गुरदेव आप ही मेरी माता पिता है मैं आपके कारण ही आज जिंदा हूं शबरी ने आंखों में आंसू लाते हुए कहा
, मतंग ऋषि ने समझाते हुए कहा अभी बेटी तेरे को बहुत काम करना है मेरे पीछे इस आश्रम का ध्यान रखना तेरे को अपने कर्मों का फल अवश्य ही मिलेगा देख लेना एक दिन भगवान राम स्वयं तुम्हारे से मिलने के लिए आएंगे तुम्हारा उद्धार करेंगे इतना कहकर मतंग ऋषि अगली यात्रा प्रारंभ कर देते है
, शबरी अपनी फटी आंखों से गुरु के शरीर को देखती रह जाती है गुरु तो समाधि ले चुके थे उसी दिन से शबरी प्रातकाल उठकर जंगल में जाती फल फूल तोड़ कर लाती फूलों से अपनी कुटिया सजाती फलो को चख चख कर अपने पास में रखती अपने राम का इंतजार करना प्रारंभ कर देती हे राम आएंगे निश्चित रूप से आएंगे पर कब आएंगे यह उसको पता नहीं था आएंगे जरूर यह आत्म विश्वास था
, प्रातकाल शबरी निकटवर्ती तालाब से जल लेने के लिए रवाना होती है तालाब की किनारे पर एक संत साधना कर रहे थे जब उनका ध्यान शबरी पर केंद्रित होता है शबरी को तालाब से जल भरते हुए देखा ऋषि अपना आपा खो देते हैं उसको भील कहकर अपमानित करता है इतना ही नहीं पत्थर हाथ में लेकर शबरी को चोट पहुंचाने के लिए फेंकते हैं वह पत्थर उसके पैर पर लगता है एक बूंद रक्त की निकलती है जो तालाब में चली जाती है
, एक बूंद खून से सारा तालाब का पानी लाल हो जाता है यू लगता है सारा पानी खूनमय बन गया है यह दृश्य देखकर ऋषि राज को और ज्यादा गुस्सा आ जाता है शबरी को बुरा-भला कहना प्रारंभ कर देते हैं शबरी रोते हुए अपने आश्रम में पहुंच जाती है अपने प्रभु राम को याद करना प्रारंभ कर देती है
, तालाब के पानी को ठीक करने के लिए अनेकों प्रकार की प्रयोग किए गए गंगाजल डाला गया यमुना का पानी मंगाया गया सभी नदियों का पवित्र जल इकट्ठा किया गया पर सारे प्रयास निष्फल हो जाते हैं रक्त जल में नहीं बदल पाता है
, प्रभु राम सीता की खोज में जंगल में इधर-उधर परिभ्रमण कर रहे थे तब राम का आज आगमन उस तालाब के किनारे पर हो जाता है जहां पर तलाब का पानी लाल हो गया था आस, पास के लोगों ने भगवान राम को देखा आग्रह किया वह अपने चरणों के स्पर्श से तालाब के रक्त को पुनः जल में बदल दे भगवान राम भी उनकी बातों को सुनकर तालाब के रक्त को अपने चरणों से स्पर्श करते हैं पर कुछ नहीं होता है ऋषि लोग भगवान राम को जो जो कहते है सब कुछ करते हैं पर रक्त जल में कोई बदलाव नहीं आता है
, राम ने कहा तपस्वी राज इस तालाब का इतिहास क्या है वह आप मेरे को बताए
तब ऋषि ने कहा अछूत महिला शबरी के कारण यह पानी रक्त में बदल गया सारा पानी अपवित्र बन गया हैं आप इसे पवित्र बनाने की अनुकंपा करवाएं
, राम यह बात सुनकर मन में दुखी बन जाते है ऋषि प्रवर शबरी का खून नहीं मेरे दिल का खून है जिसको तुमने अपने अपशब्दों से घायल किया है मेरे को सबरी से मिलना है यह बाद सुनकर सभी आश्चर्य चकित रह जाते है अछूत महिला से मिलकर प्रभु राम क्या करेंगे
, राम का आदेश होते ही तत्काल एक व्यक्ति शबरी के आश्रम की तरफ दोड़ता है प्रभु राम के आगमन की सूचना देता है शबरी के कानों में राम शब्द टकराता है वह बालक की तरह दोड़ती हुई प्रभु राम के चरणों में पहुंच जाती है
, राम को दूर से देखते ही वह चिल्लाना प्रारंभ कर देती है प्रभु राम कहो राम प्रभु राम सबरी तालाब के किनारे पहुंच जाती है अपने राम से मिलने के लिए सबरी के पैर की धूल तालाब में चली जाती है एक क्षण में सारा खून पानी में बदल जाता है सारे लोग आश्चर्य चकित रह जाते है यह क्या चमत्कार हो गया है
, रघुराम ने कहा तपस्वी राज मैंने अपनी तरफ से सारे उपाय किए कोई फर्क नहीं पड़ा शबरी के पैरों की रेत का चमत्कार है खून जल में बदल जाता है
, शबरी अपने प्रभु राम को देखती है वह तत्काल आगे बढ़ते हुए प्रभु राम के दोनों पैर पकड़ लेती है अपने आश्रम में पधारने की प्रार्थना करना प्रारंभ कर देती है
, भगवान अपने भक्तों की हर इच्छा को पूरी करते हैं प्रभु राम के चरण शबरी के आश्रम की ओर गतिशील वन जाते है संत लोग राम के पीछे पीछे अनु गमन करना प्रारंभ कर देते हैं
, शबरी प्रतिदिन की तरह फल फूल लेकर आती है अपनी कुटिया को सजाती है अपनी प्रभु का स्वागत अभिनंदन करती है जंगल की वैरो को अपने दांतों से चख चखकर प्रभु राम को खिलाना प्रारंभ कर देती है प्रभु राम जी भी मुस्कुराते हुए खाना प्रारंभ कर देते हैं
, बगल में खड़े लक्ष्मण ने प्रभू राम से प्रार्थना की भैया यह तो जूठे बेर है प्रभु राम ने कहा लक्ष्मण यह जूठे बेर नहीं मीठे बेर है शबरी प्रेम से खिला रही है मैं प्रेम से खा रहा हूं प्रेम से बढ़कर और दुनिया में कोई मिठाई नहीं होती है
, आज मतंग ऋषि का कहा हुआ शब्द चरितार्थ हो जाता है प्रभु राम तेरी कुटिया में आएंगे तेरा कल्याण करेंगे उसी दिन से प्रभु राम शबरी के राम कहलाना प्रारंभ कर देते हैं आज भी वह स्थान छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के पास अवस्थित है जहां पर शबरी के बेर राम ने खाए थे तब से प्रसिद्ध हो जाता है यह रचना मेरी नहीं है। मुझे अच्छी लगी तो आपके साथ शेयर करने का मन हुआ।🌷*