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,,,,,,,,,,,, कहानी,,,,,,,,,,,,,,,,
🪻🪻🪻🪻🪻🪻🪻
🪸🪸🪸🪸🪸🪸🪸
,,,,,,,,,,,,,,,कर्मकांड,,,,,,,,,,,,,,
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, आज गुरुकुल का प्रवेशोत्सव मनाया जा रहा था नए-नए विद्यार्थी गुरुकुल में प्रवेश करने के लिए अपने आपको प्रस्तुत करना आरंभ कर देते हैं
, पुराने विद्यार्थी गुरुकुल में प्रवेश करने वाले नए विद्यार्थियों का तिलक लगाकर स्वागत अभिनंदन करना आरंभ कर देते हैं
, स्कंध देव का गुरुकुल आश्रम बहुत ज्यादा प्रसिद्धि प्राप्त कर चुका था इस समय राजा से लेकर रंक के विद्यार्थी भी प्रवेश करते थे यहां पर कोई भेदभाव की लकीर नजर नहीं आती थी
, गुरुकुल में अध्यात्म योंग ध्यान साधना के प्रयोग भी करवाए जाते थे जिससे विद्यार्थी बौद्धिक विकास के साथ आध्यात्मिक विकास की ओर भी अपने आप को गतिशील बना सके
, गुरुकुल में नियमित रुप से कक्षाएं प्रारंभ हो चुकी थी सारे विद्यार्थी एकाग्रता के साथ अध्यन करना प्रारंभ कर देते हैं गुरु का आगमन उनकी प्रवचन शैली सब विद्यार्थियों को आकर्षित करने वाली बनती जा रही थी
, गुरुकुल में अध्ययन करने वाले प्रत्येक विद्यार्थी अपने मन में संतोष की अनुभूति करता था चारु तरफ हर्ष का वातावरण निर्मित हो जाता है
, एक दिन प्रश्नोत्तर का कार्यक्रम चल रहा था प्रमुख शिष्य कौस्तुभ ने गुरु के सामने प्रश्न प्रस्तुत किया गुरुदेव क्या हम ईश्वर का साक्षात्कार इस जीवन में कर सकते है क्या? यह प्रश्न सभी विद्यार्थियों को अपनी और आकर्षित करने वाला था हर विद्यार्थी ईश्वर से साक्षात्कार करना चाहता था
, शिष्य का प्रश्न सुनकर गुरु स्कंध देव मुस्कुराने लग जाते है क्यों नहीं कर सकते हैं अवश्य कर सकते हैं पर इस प्रश्न का उत्तर आज नहीं कल तुम्हारे को प्राप्त होगा गुरु ने आश्वस्त करते हुए कहा
, आज सायं काल शयन करने से पूर्व सभी विद्यार्थियों को 108 बार प्रभु स्मरण करके सोना है याद रखना 108 के संख्या पूरी होनी चाहिए गुरु ने आदेश प्रदान किया
, सभी विद्यार्थी हाथ जोड़कर मस्तक झुकाकर गुरु के आदेश को शिरोधार्य करते हैं साथ में विश्वास भी दिलवाते हैं हम आपके आदेश का अवश्य ही पावन कर के रहेंगे
, प्रातकाल का वातावरण आज बहुत ज्यादा सुखद नजर आ रहा था सभी विद्यार्थी अपने -अपने स्थान पर आंख मूंद कर बैठ जाते है इंतजार कर रही है गुरु के आगमन का
, गुरु का आगमन होता है सभी विद्यार्थी अपने अपने स्थान पर खड़े होकर गुरु का स्वागत अभिनंदन करते हैं गुरु का आशीर्वाद प्राप्त होता है सभी विद्यार्थी पुनः अपने स्थान पर अवस्थित हो जाती है
, गुरु का प्रश्न कानो में टकराता है क्या तुम सब विद्यार्थियों ने कल शायंम काल सोने से पूर्व मंत्र शक्ति का प्रयोग किया सभी विद्यार्थी के हाथ ऊपर हो जाते हैं
, हां गुरुदेव 108 बार मंत्र शक्ति का प्रयोग करने के पश्चात हमने शयन किया था मंत्र शक्ति का प्रयोग अच्छी तरह से किया था सभी ने अपनी बात प्रस्तुत की
, गुरु का मन शांत नहीं हो रहा था उनकी नजर चारों तरफ घूमती जा रही थी अपना प्रमुख शिष्य कौस्तुभ कहीं पर भी नजर नहीं आ रहा था जहां किसी की नजर नहीं जाती है वहां पर गुरु की नजर जाती है
, क्या बात है कौस्तुभ नजर नहीं आ रहा है कहां पर है उसको खोज कर लेकर आओ गुरु के मुखारविंद से जब यह शब्द गुंजायमान होते है तब सभी विद्यार्थी का ध्यान कौस्तुभ पर केंद्रित होना प्रारंभ होता है वह कहीं पर भी नजर नहीं आ रहा था
, एक विद्यार्थी खोज में निकल जाता है उसने देखा कौस्तुभ एक कोनी में बैठा हुआ है गुमसुम अवस्था में कंधे पर हाथ रखते हुए कहा गुरुदेव तुम्हारे को याद कर रही जल्दी चलो मेरे साथ सभी विद्यार्थी कक्षा में उपस्थित हो चुके है केवल तुम ही नहीं आए
, कंधे पर हाथ का स्पर्श होते ही उस की तंद्रा भंग होती है वह तत्काल उठकर अपने मित्र विद्यार्थी के साथ अध्यन कक्षा की ओर रवाना हो जाता है गुरु के चरणों में दंडवत प्रणाम करता है
, क्या तुमने मंत्र शक्ति का प्रयोग सयन करने से पूर्व किया था गुरु का प्रश्न कौस्तुभ के कानों में टकराता है वह अपने आप को सावधान बनाना प्रारंभ कर देता है
, कौस्तुभ के नेत्र नीचे झुक जाते हैं विनम्रता के साथ सोम्यता के साथ उत्तर देता है गुरुदेव आप मेरे अपराध को क्षमा प्रदान करवाएंगे मैंने अपनी ओर से बहुत ज्यादा प्रयत्न करने का प्रयास किया पर में सफल नहीं हो सका जब यह उतर आता है सारे विद्या क्यों का धान उस पर केंद्रित हो जाता है आश्चर्य भरी नजरों के साथ निहार ना प्रारंभ कर देते है
, गुरुदेव मैंने अपनी तरफ से बहुत प्रयत्न किया जब में संख्या गिनने में चित लगाना प्रारंभ करता तो भगवान का ध्यान नहीं रहता था जब मैं भगवान का ध्यान करता तो गिनती भूल जाता था पूरी रात मेरी ऐसे ही व्यतीत हो गई मैं आपके वचन को पूरा नहीं कर सका आप मुझे निश्चित रूप से क्षमादान प्रदान करवाएंगे
, शिष्य का उत्तर सुनकर गुरु का चेहरा कमल की तरह खिलना प्रारंभ हो जाता है विद्यार्थियों कल के प्रश्न का उत्तर आज आपको मिल गया होगा
,जब हमारा मन संसार की सुख संपति भोग की गिनती में लग जाता है तब हम प्रेम रूपी प्रभु को भूल जाते हैं इसलिए हमारा ध्यान वहारी कर्मकांड में नहीं लगाना चाहिए
, सारे विद्यार्थी खुश हो जाते हैं सबके मुखारविंद से यह किस शब्द निकलता हमारे को कर्मकांड में ध्यान नहीं देना चाहिए
, कर्मकांड?
,, कर्मकांड? कर्मकांड??
,,, कर्मकांड? कर्मकांड?? कर्मकांड??????????
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🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹यह रचना मेरी नहीं है। मुझे अच्छी लगी तो आपके साथ शेयर करने का मन हुआ।🌷*