उपासना कैसे करें!
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“गुरुदेव !एक बात और बताएं। लोग अक्सर कहते हैं कि उपासना के लिए न तो समय मिलता है और न ही उचित स्थान । छोटे-छोटे घर हैं, वहां कई लोग रहते हैं पूरा परिवार है। ऐसे में उपासना व जप के लिए एकांत ही नहीं मिलता ।फिर क्या करें?” हमने जिज्ञासा प्रकट की।
“यह तो आज की बहुत गंभीर समस्या है लेकिन इसका समाधान भी बड़ा सरल है। उपासना के लिए साफ-सुधरा स्थान हो ,एकांत हो और आसन लगाकर एकाग्रचित्त होकर बैठने की सुविधा हो तो फिर बात ही क्या है। इस प्रकार बैठकर उपासना व ध्यान करने से मन पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता है। परंतु यह सुविधा न मिले तो क्या कुछ भी न करें।”
“एक घुड़सवार एक बार कहीं जा रहा था। घोड़ा बहुत प्यासा था ,हांफ रहा था, पर रास्ते में कहीं पानी दिखाई नहीं दे रहा था। अचानक उसने देखा कि एक खेत के किनारे बैठा किसान रहट से कुएं से पानी निकालकर खेत को सींच रहा है। बैल चल रहे थे, रहट की माला नीचे जाती थी, पानी लेकर ऊपर आती थी ,पानी नीचे गिरकर नाली में होकर खेत में पहुंच रहा था ।रहट चलने से चीं-चीं की आवाज हो रही थी ।उसने घोड़े को पानी पिलाने के लिए आगे बढ़ाया ,घोड़ा रहट की आवाज से डरकर पीछे हट गया ।उसने फिर प्रयास किया, वह फिर पीछे हट गया। वह सवार लगाम पकड़कर खड़ा हो गया। थोड़ी देर बाद किसान ने कहा- _खड़े क्यों हो ,घोड़े को पानी क्यों नहीं पिलाते_ ।
सवार बोला _’यह चीं-चीं बंद हो जाए तो पानी पिलाऊं_।
इस पर किसान हंसा और बोला _’अरे यह चीं-चीं बंद हो जाएगी तो पानी भी बंद हो जाएगा फिर क्या पिलाओगे। अगर पिलाना है तो इस चीं-चीं में ही पिला लो_।”
“तो बेटे! यही तत्व की बात है। जगह नहीं है , शोर है , सारा परिवार उसी कमरे में रहता है, सब जगह चीं-चीं हो रही है ।पर यदि उपासना करनी है, साधना करनी है, ध्यान करना है, जप करना है तो इसी चीं-चीं ही में करना होगा। बच्चों की चींचीं मे ही मन के घोड़े को पानी पिलाना होगा।”
“जहां भी हो, जैसे भी हो , जिस स्थिति में भी हो, हर समय गायत्री माता को ध्यान में रखो । बस में, ट्रेन में ,कारखाने में ,बाजार में, घर में हर समय चीं-चीं के बीच इसका ध्यान करो। जब भी समय मिले जप करो। यही सच्ची गायत्री उपासना है।
“गुरुदेव यह तो बड़ा ही कठिन कार्य है। कहना तो सरल है पर करना असंभव सा लगता है।”* हम ने आशंका व्यक्त की
“हां बेटे! हर कार्य कहने में आसान और करने में कठिन होता है ।पर जब करने का मन बना लोगे तो वह स्वतःही सुगम व सरल हो जाएगा ।अच्छा ! भक्त प्रहलाद के बारे में तो जानते ही हो। उससे अधिक विषम परिस्थितियां किस के समक्ष रही होंगीं। कहां एक छोटा सा बालक और कहां एक सर्वशक्तिमान सम्राट , जिसके भय से मनुष्य ही नहीं जीव जंतु तक काँपते थे ।सारे राज्य में भगवान का नाम लेने पर मृत्युदंड देने का विधान था। लोग हर समय हिरण्यकश्यप नमः का ही जाप करते थे । प्रहलाद तो उस निरंकुश शासक का पुत्र था । घर- बाहर हर जगह , हर समय उसे यही सब सुनने को मिलता था। जिसका बाप ही इतना कुबुद्धिग्रस्त हो उस नन्हे से बालक की विषम परिस्थितियों की कल्पना करो।”
“पर प्रहलाद पर गायत्री माता की कृपा थी, उसमें सद्बुद्धि का जागरण हुआ था, उसने विवेक से विचार करके अपने पिता की क्रूरता की निस्सारता को समझा था और ईश्वर भक्ति के सच्चे मार्ग पर चल पड़ा था। उसके दृढ़ निश्चय को क्या कोई डिगा सका था ? नहीं, उसके पिता की समस्त क्रूर शक्तियां भी उसे विचलित नहीं कर सकीं और अंत में विजय किसकी हुई- सद्बुद्धि की।”
“तो बेटे , प्रयास तो करना ही पड़ेगा । चींचीं और चिल्ल-पों के कारण यदि कुछ भी न किया तो फिर केवल पछताना ही पड़ेगा । यह हो सकता है कि प्रहलाद की भांति पूर्ण सफलता न मिले पर कुछ न कुछ लाभ तो होगा ही। जो भी थोड़ा बहुत फल मिलेगा वह गायत्री की पंचकोशी साधना का व्यवहारिक रूप ही होगा।”यह रचना मेरी नहीं है मगर मुझे अच्छी लगी तो आपके साथ शेयर करने का मन हुआ।🙏🏻