“प्रभु दर्शन कैसे करें ?”
हम लोगों को दर्शन करना नहीं आता! हम मन्दिर में जाकर कहते हैं वाह! बड़ी अच्छी मार्बल की मूर्ति है, सोने-चाँदी की मूर्ति है, काष्ठ की मूर्ति है। वहाँ जाकर भगवान् का दर्शन करना चाहिए न की जड़-वस्तुओं का!
रास्ते में जो नहीं देखना चाहिए, वो तो देखते चले जाते हैं। दूसरों के गुणदोष और भगवान् के सामने प्रेमपूर्वक दर्शन करके दृष्टि को कृतार्थ करना चाहिए, तो वहाँ आँख मूँद के खड़े हो जाते हैं। क्या दुर्भाग्य है ! कितनी सुन्दर झाँकी है, फिर भी आँख मूंदकर खड़े हैं। आँख मूंदकर खड़े हैं तो वो भी किसी निष्काम भाव से प्रार्थना करने नहीं बल्कि हे भगवन! वहाँ से चलकर हम यहाँ तक आए हैं। हमें अमुक-अमुक वस्तुओं की आवश्यकता है, आप ये दे दीजिये, ये भी दे दीजिये। बस पूरी लिस्ट बाँचकर सुनाई, फिर प्रणाम किया और चले आए फिर दुबारा मुड़कर देखा ही नहीं ये दर्शन दत्तचित्त नहीं है।
अरे निहारो, ठाकुरजी को निहारो चरण से लेकर मुख पर्यन्त और मुख से लेकर चरण पर्यन्त । बार-बार छवि को निहारो। आवश्यक नहीं कि 10-20 मंदिरों में जाएं, एक स्थान पर दर्शन करो लेकिन निहारो और जब प्रेमपूर्वक ठाकुरजी को आप निहारने लग जायेंगे तो मन्दिरों में ही नहीं आप के घर के ठाकुरजी में ही आपको विविध अनुभूतियाँ होने लगेंगी।
कभी लगेगा हमारे ठाकुरजी आज थोड़े गंभीर हैं, कभी लगेगा आज थोड़े अनमने से हैं, कभी लगेगा नजर से नजर मिलती है लेकिन वे शरमा रहे हैं और फिर तन्मयता बढ़ेगी तो एकदिन आयेगा वे बातचीत भी करने लगेंगे।
“जय जय श्री राधे”