श्रीरामचरितमानस के सातों काण्डों की महिमा
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रामचरितमानस के प्रत्येक काण्ड भगवान् श्रीराम के अंग माने गए है।
🔹बालकाण्ड🔹
श्रीराम का चरण हैं
🔹अयोध्या काण्ड🔹
श्रीराम की जंघा हैं
🔹अरण्यकाण्ड🔹
श्रीराम का उदर हैं
🔹किष्किन्धाकाण्ड🔹
श्रीराम का ह्रदय हैं
🔹सुन्दरकाण्ड🔹
श्रीराम का कंठ हैं
🔹लंकाकाण्ड🔹
श्रीराम का मुख हैं
🔹उत्तरकाण्ड🔹
श्रीराम का मस्तक हैं
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🔹प्रथम काण्ड बालकाण्ड हैं🔹
बालक जैसे निर्दोष बनोगे तो श्रीराम को प्रिय लगोगे। बालक प्रभु को प्रिय हैं। कारण कि बालक निरभिमानी होते हैं। उनमें छलकपट नहीं होता।आखों के द्वारा दोष मन में परविष्ट होता हैं। सो दृष्टि पर अंकुश रखोगे तो जीवन निर्दोष बनेगा।
जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि।
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बालकाण्ड के बाद
🔹अयोध्याकाण्ड हैं🔹
अयोध्याकाण्ड प्रेम प्रदान करता हैं।
श्रीराम का भरत प्रेम, राम जी का सौतेली माता से प्रेम आदि सब इसी काण्ड में हैं।
श्रीराम की निर्विकारता यही दिखाई देती हैं।
आनन्द रामायण में हर काण्ड की भिन्न-भिन्न फलश्रुती बतायी गई हैं।
जो अयोध्याकाण्ड का पाठ करता हैं, उसके घर अयोध्या बनता हैं। उसके घर में लड़ाई-झगड़े नहीं होते। गृहस्थाश्रमी के लिए यह काण्ड आवश्यक हैं।
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अयोध्याकाण्ड के बाद आता हैं अरण्यकाण्ड-
🔹अरण्यकाण्ड🔹श्रीरामचन्द्रजी ने राजा होते हुए भी श्रीसीता के साथ वनवास किया और तपश्रर्या भी की। तप करने के बाद श्रीराम राजा बने।
जिसने पहले तपश्रर्या की होगी, वह भोगोपभोग के प्रंसग में संयम और सावधानी से काम लेगा।
सभी महान् व्यक्तियों ने अरण्यवास किया था।
महाप्रभु ने खुले पांव ही भारत की यात्रा की थी। वे दो से अधिक वस्त्र तक नहीं रखते थे।
जीवन में तप जरूरी हैं। वनवास के बिना जीवन में सुवास आ नहीं पाता।
वनवास मनुष्य के ह्रदय को कोमल बनाता हैं।
अरण्यकाण्ड हमें वासना रहित बनाता हैं।
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🔹किष्किन्धाकाण्ड🔹
अरण्यकाण्ड में वासना के विनाश के बाद किष्किन्धाकाण्ड में सुग्रीव की श्रीराम से मैत्री हुईं।
जीव जब तक काम की मैत्री का त्याग नहीं करता हैं, तब तक ईश्वर से मैत्री नहीं हो पाती।
इस काण्ड में सुग्रीव और श्रीराम अथार्त् जीव और भगवान की मैत्री का वर्णन हैं। सुग्रीव ने काम का त्याग किया सो ईश्वर से मिलन हो पाया।
ईश्वर से जीव का मिलन तभी सम्भव हैं, जब कि हनुमानजी (ब्रम्चर्य और संयम) मध्यसता करते हैं।
जिसका कण्ठ सुन्दर है, उसी की श्रीराम से मैत्री होती हैं। सुग्रीव को हनुमानजी के कारण ही श्रीराम प्रभु अपनाते हैं।
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🔹सुन्दरकाण्ड🔹
ईश्वर से मैत्री हुई सो जीव का जीवन सुन्दर हो गया। जब तक जीव प्रभु से मैत्री नहीं करता, तब तक उसका जीवन सुधर नहीं पाता।
सुन्दरकाण्ड सचमुच ही बहुत सुन्दर हैं। इसमें श्रीराम भत्त हनुमान जी की कथा वर्णित है। भागवत में जो स्थान दशम स्कन्द का है, वही स्थान रामायण में सुन्दरकाण्ड का हैं।
सुन्दरकाण्ड में हनुमान जी को श्रीजानकी जी के दर्शन हुए। श्रीजानकी जी पराभक्ति हैं। किन्तु उनका दर्शन कब हो सकता हैं?
जिसका जीवन सुन्दर बन पाता है, उसी को श्रीजानकी जी-पराभक्ति का दर्शन हो सकता हैं।
संसार-समुन्दर को पार करने वाले को ही श्रीजानकी जी-पराभक्ति के दर्शन हो पाते हैं। राम नाम के प्रताप से उनमें दिव्य शक्ति का संचार हुआ जिसके कारण हनुमान जी ने समुन्दर पार किया। जो संसार-सागर को पार करने का इच्छुक हैं, उसे जीभ को वश में करना होगा स्वाद वासना को मारना होगा।
जीवन को यदि सुन्दर बनाना हैं तो उसे भक्तिमय बनाओ। जहाँ पराभक्ति हैं वहां शोक नहीं रह पाता।
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🔹लंकाकाण्ड🔹
जीवन भक्तिमय और सुन्दर हो जाने पर लंकाकाण्ड में राक्षसों का नाश हुआ। राक्षस मरते हैं तो काम भी मरता हैं। क्रोध भी नष्ट होता हैं। भक्तिदेवी के दर्शन से जीवन सुन्दर हो गया। लंकाकाण्ड का रावण ही काम हैं जो नष्ट हो गया।
हनुमान जी लंका को अर्थात काल को जलाते हैं।
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🔹उत्तरकाण्ड🔹
गोस्वामी तुलसीदासजी ने इस काण्ड में सब कुछ भर दिया हैं।
भक्त कौन हैं जो भगवान से एक भी क्षण विभक्त नहीं रह पाता, वही भक्त हैं।
इस प्रकार ये सात काण्ड मानव जीवन की उनति के सात सोपान हैं।
श्रीराम कथा सागर जैसी हैं।
शिवजी की भांति ह्रदय में रामनाम रखोगे तो भी अच्छा रहेगा।
हनुमान जी कहते हैं कि सबसे बड़ी विपत्ति वही हैं कि जब रामनाम का स्मरण न किया जाता है।
🔸🔹सियापति रामचन्द्र की जय🔹🔸