July 27, 2024 3:07 am
Search
Close this search box.
Search
Close this search box.

हमारा ऐप डाउनलोड करें

​गंगा नदी, कलियुग में मनुष्य को सुलभता से मोक्ष प्रदान करनेवाली मोक्षदायिनी

👇खबर सुनने के लिए प्ले बटन दबाएं

​गंगा नदी, भारतवर्ष की पवित्रता का सर्वश्रेष्ठ केंद्रबिंदु !

कलियुग में मनुष्य को सुलभता से मोक्ष प्रदान करनेवाली मोक्षदायिनी

मार्ग में करोडों भारतीयों को जल की आपूर्ति, फसलें उगाती, धरती का ताप दूर करनेवाली जीवनदायिनी

गंगास्नान के चैतन्यस्रोत से जीव की शुद्धि करनेवाली चैतन्यदायिनी

गंगा नदी भारतवर्ष की हृदयरेखा है ! राष्ट्रीय दृष्टि से भिन्न आचार-विचार, वेशभूषा, जीवनपद्धति एवं जातियों से युक्त समाज को एकत्रित लानेवाली गंगा नदी हिंदुस्थान की राष्ट्रीय-प्रतीक ही है । ‘आर्य सनातन वैदिक संस्कृति’ गंगा के तट पर विकसित हुई, इसलिए गंगा भारतीय संस्कृति का मूलाधार है । प्राचीन काल से अर्वाचीनकाल तक तथा गंगोत्री से गंगासागर तक गंगा की कथा हिंदू सभ्यता एवं संस्कृति की अमृतगाथा है । धार्मिक दृष्टि से इतिहास के उषःकाल से कोटि-कोटि हिंदू श्रद्धालुओं को मोक्ष प्रदान करनेवाली गंगा विश्‍व का सर्वश्रेष्ठ तीर्थ है । गंगाजी मोक्षदायिनी हैं । इस कलियुग में श्रद्धालुओं के पाप-ताप नष्ट हों, इसलिए ईश्‍वर ने उन्हें इस पृथ्वी पर भेजा है । वे प्रकृति का बहता जल नहीं; अपितु सुरसरिता अर्थात देवनदी हैं । उनके प्रति हिन्दुओं की आस्था उतनी ही सर्वोच्च है जितनी की शिव पार्वती के प्रति । नारदपुराण में तो कहा गया है कि ‘अष्टांग योग, तप एवं यज्ञ, इन सबकी तुलना में गंगाजी का निवास उत्तम है । गंगाजी भारत की पवित्रता की सबसे श्रेष्ठ केंद्रबिंदु हैं, उनकी महिमा का वर्णन नहीं कर सकते । आध्यात्मिक क्षेत्र में जो स्थान गीता का है, वही स्थान धार्मिक क्षेत्र में गंगा का है ।

गंगा नदी के अन्य कुछ नाम
भागीरथी, विष्णुप्रिया, विष्णुपदी, ब्रह्मद्रवा, जान्हवी, मंदाकिनी, त्रिपथगा ।

‘गैंजेस्’ न कहें !
ग्रीक, अंग्रेजी आदि यूरोपीय भाषाओं में गंगा का उच्चारण विकृतरूप से अर्थात ‘गैंजेस्’ ऐसा किया जाता है । आंग्लदासता की मानसिकता रखनेवाले भारतीय भी इसी नाम से उच्चारण करते हैं। ‘शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध तथा उनसे संबंधित शक्तियां एकत्रित होती हैं’, यह अध्यात्मशास्त्रीय सिद्धांत है । ‘गंगा’ शब्द का अनुचित पद्धतिसेे उच्चारण करनेवालों को गंगाजी के स्मरण का आध्यात्मिक लाभ कैसे प्राप्त होगा ? इसीलिए विदेशी भाषा में बोलते एवं लिखते समय उन्हें ‘गंगा’ के नाम से ही संबोधित करें !

गंगा शब्द का अर्थ
​अ. गमयति भगवत्पदम् इति गङ्गा ।
अर्थ: गंगा वे हैं जो (स्नान करनेवाले जीव को ) ईश्‍वर के चरणों तक पहुंचाती हैं ।

​आ. गम्यते प्राप्यते मोक्षार्थिभिः इति गङ्गा ।
अर्थ: जिनकी ओर मोक्षार्थी अर्थात मुमुक्षु जाते हैं, वही गंगाजी हैं ।

ब्रह्मांड में गंगा नदी की उत्पत्ति एवं भूलोक में उनका अवतरण

ब्रह्मांड में उत्पत्ति
​‘वामनावतार में श्रीविष्णु ने दानवीर बलीराजा से भिक्षा के रूप में तीन पग भूमि का दान मांगा । राजा इस बात से अनभिज्ञ था कि श्रीविष्णु ही वामन के रूप में आए हैं, उसने उसी क्षण वामन को तीन पग भूमि दान की । वामन ने विराट रूप धारण कर पहले पग में संपूर्ण पृथ्वी तथा दूसरे पग में अंतरिक्ष व्याप लिया। दूसरा पग उठाते समय वामन के (श्रीविष्णुके) बाएं पैर के अंगूठे के धक्के से ब्रह्मांड का सूक्ष्म-जलीय कवच (टिप्पणी १) टूट गया । उस छिद्र से गर्भोदक की भांति ‘ब्रह्मांड के बाहर के सूक्ष्म-जल ने ब्रह्मांड में प्रवेश किया । यह सूक्ष्म-जल ही गंगा है !

गंगाजी का यह प्रवाह सर्वप्रथम सत्यलोक में गया । ब्रह्मदेव ने उसे अपने कमंडलु में धारण किया । तदुपरांत सत्यलोक में ब्रह्माजी ने अपने कमंडलु के जल से श्रीविष्णु के चरणकमल धोए । उस जल से गंगाजी की उत्पत्ति हुई । तत्पश्‍चात गंगाजी की यात्रा सत्यलोक से क्रमशः तपोलोक, जनलोक, महर्लोक, इस मार्ग से स्वर्गलोक तक हुई ।

भूलोक में अवतरण
​भगीरथजी की कठोर तपस्या के कारण गंगाजी का पृथ्वी पर अवतरित होना एवं सगरपुत्रों का उद्धार करना : ‘सूर्यवंश के राजा सगर ने अश्‍वमेध यज्ञ आरंभ किया । उन्होंने दिग्विजय के लिए यज्ञीय अश्‍व भेजा एवं अपने ६० सहस्र पुत्रों को भी उस अश्‍व की रक्षा हेतु भेजा । इस यज्ञ से भयभीत इंद्रदेव ने यज्ञीय अश्‍व को कपिलमुनि के आश्रम के निकट बांध दिया । जब सगरपुत्रों को वह अश्‍व कपिलमुनि के आश्रम के निकट प्राप्त हुआ, तब उन्हें लगा, ‘कपिलमुनि ने ही अश्‍व चुराया है ।’ इसलिए सगरपुत्रों ने ध्यानस्थ कपिलमुनि पर आक्रमण करने की सोची । कपिलमुनि को अंतर्ज्ञान से यह बात ज्ञात हो गई तथा अपने नेत्र खोले । उसी क्षण उनके नेत्रों से प्रक्षेपित तेज से सभी सगरपुत्र भस्म हो गए । कुछ समय पश्‍चात सगर के प्रपौत्र राजा अंशुमन ने सगरपुत्रों की मृत्यु का कारण खोजा एवं उनके उद्धार का मार्ग पूछा । कपिलमुनि ने अंशुमन से कहा, ‘‘गंगाजी को स्वर्ग से भूतल पर लाना होगा । सगरपुत्रों की अस्थियों पर जब गंगाजल प्रवाहित होगा, तभी उनका उद्धार होगा !’’ मुनिवर के बताए अनुसार गंगा को

पृथ्वी पर लाने हेतु अंशुमन ने तप आरंभ किया ।’ ‘अंशुमनकी मृत्युके पश्चात उसके सुपुत्र राजा दिलीपने भी गंगावतरणके लिए तपस्या की । अंशुमन एवं दिलीपके सहस्त्र वर्ष तप करनेपर भी गंगावतरण नहीं हुआ; परंतु तपस्याके कारण उन दोनोंको स्वर्गलोक प्राप्त हुआ ।’ (वाल्मीकिरामायण, काण्ड १, अध्याय ४१, २०-२१)

‘राजा दिलीपकी मृत्युके पश्चात उनके पुत्र राजा भगीरथने कठोर तपस्या की । उनकी इस तपस्यासे प्रसन्न होकर गंगामाताने भगीरथसे कहा, ‘‘मेरे इस प्रचंड प्रवाहको सहना पृथ्वीके लिए कठिन होगा । अतः तुम भगवान शंकरको प्रसन्न करो ।’’ आगे भगीरथकी घोर तपस्यासे भगवान शंकर प्रसन्न हुए तथा भगवान शंकरने गंगाजीके प्रवाहको जटामें धारण कर उसे पृथ्वीपर छोडा । इस प्रकार हिमालयमें अवतीर्ण गंगाजी भगीरथके पीछे-पीछे हरद्वार, प्रयाग आदि स्थानोंको पवित्र करते हुए बंगालके उपसागरमें (खाडीमें) लुप्त हुईं ।’

​दशमी शुक्लपक्षे तु ज्येष्ठे मासि कुजेऽहनि ।
अवतीर्णा यतः स्वर्गात् हस्तर्क्षे च सरिद्वरा ॥ – वराहपुराण
अर्थ : ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, दशमी तिथि, भौमवार (मंगलवार) एवं हस्त नक्षत्र के शुभ योग पर गंगाजी स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुईं ।

गंगावतरण की तिथि का उल्लेख कुछ पुराणों में वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया, तो कुछ पुराणों में कार्तिक पूर्णिमा किया गया है, तब भी अधिकांश पुराणों में ‘ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष दशमी’ ही गंगावतरण की तिथि उल्लेखित की गई है तथा वही सर्वमान्य है ।

​टिप्पणी १ – हिंदू धर्मशास्त्र के अनुसार ब्रह्मांड भूलोकादि सप्तलोक एवं सप्तपातालों को मिलाकर 14 भुवनों से बना है । ब्रह्मांड अंडाकार है तथा उसके बाहर चारों दिशाओं से क्रमशः सूक्ष्म-पृथ्वी, सूक्ष्म-जल, सूक्ष्म-तेज, सूक्ष्म-वायु, सूक्ष्म-आकाश, अहम्तत्त्व, महत्तत्त्व एवं प्रकृति के कुल 8 कवच होते हैं । इन कवचों में से ‘सूक्ष्म-जलीय कवच’ अर्थात गंगा । अतएव आयुर्वेद में गंगाजल को ‘अंतरिक्षजल’ कहा गया है ।’

मां गंगा की महिमा
धर्मग्रंथों में वर्णित
१. ऋग्वेद – इसके प्रसिद्ध नदीसूक्त में सर्वप्रथम गंगाजी का आवाहन तथा स्तुति की गई है ।

२. महाभारत – ‘जिस प्रकार देवताओं के लिए अमृत, उसी प्रकार मनुष्य के लिए गंगाजल (अमृत) है ।’ ‘गंगाजी में कहीं भी स्नान करने से गंगाजी कुरुक्षेत्र की भांति (द्वापरयुग में सरस्वती नदी के तटपर कुरुक्षेत्र नामक पवित्र तीर्थ था ।) पवित्र हैं ।

३. श्रीमद्भगवद्गीता – भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को (अध्याय १०, श्‍लोक ३१ में) विभूतियोग बताते हुए कहा ‘स्रोतसामस्मि जाह्नवी ।’, अर्थात ‘सभी प्रवाहों में मैं गंगा हूं ।’

समस्त संप्रदायों में वंदनीय
भारत में सकल संत, आचार्य एवं महापुरुष, तथा समस्त संप्रदायों ने गंगाजल की पवित्रता को मान्यता दी है । शंकरजी ने गंगाजी को मस्तक पर धारण किया, इसलिए शैवों को एवं विष्णु के चरणकमलों से गंगाजी के उत्पन्न होने से वैष्णवों को वे परमपावन प्रतीत होती हैं । शाक्तों ने भी गंगाजी को आदिशक्ति का एक रूप मानकर उनकी आराधना की है ।

महापुरुषों द्वारा की गई गंगास्तुति
१. वाल्मीकि ऋषि – इनके द्वारा रचा ‘गंगाष्टक’ नामक स्तोत्र विख्यात है । संस्कृत जाननेवाले श्रद्धालु स्नान के समय इसका पाठ करते हैं । उनकी ऐसी श्रद्धा है कि इससे गंगास्नान का फल प्राप्त होता है ।’

२. आद्यशंकराचार्य – ​इन्होंने गंगास्तोत्र रचा । इसमें वे कहते हैं,
​वरमिह नीरे कमठो मीनः किं वा तीरे शरटः क्षीणः ।
​अथवा श्‍वपचो मलिनो दीनस्तव न हि दूरे नृपतिकुलीनः ॥ (श्‍लोक ११)
अर्थ : हे गंगे, आपसे दूर जाकर कुलीन राजा बनने की अपेक्षा आपके इस जल में कच्छप (कछुआ) अथवा मछली होना अथवा आपके तट पर वास करनेवाला क्षुद्र रेंगनेवाला प्राणी अथवा दीन-दुर्बल चांडाल होना सदैव श्रेष्ठ है ।

३. गोस्वामी तुलसीदास – इन्होंने अपनी ‘ककिताकली’ के उत्तरकाण्ड में तीन छंदों में ‘श्रीगंगामाहात्म्य’ वर्णित किया है । इसमें प्रमुखरूप से गंगादर्शन, गंगास्नान, गंगाजल सेवन इत्यादि की महिमा वर्णित है ।

४. पंडितराज जगन्नाथ (वर्ष १५९० से १६६५) – इन्होंने ‘गंगालहरी’ (‘पीयूषलहरी’) नामक ५२ श्‍लोकों का काव्य रचा । इसमें गंगाजी के विविध लोकोत्तर गुणों का वर्णन कर अपने उद्धार के विषय में विनम्रतापूर्वक प्रार्थना की है ।

गंगा माता की कुछ अद्भुत विशेषताएं
​जीवनदायिनी
मार्ग में वह करोडों भारतीयों को जल की आपूर्ति करती हैं, धरती का ताप दूर करती हैं, फसलें उगाती हैं एवं श्रद्धालुओं को गंगास्नान का अवसर प्रदान करती हैं ।

​आरोग्यदायिनी
सैकडों औषधीय वनस्पति गंगा परिसर में पाई जाती हैं । ये वनस्पतियां मनुष्य के प्रत्येक रोगपर उपचार हेतु उपयुक्त हैं । गंगाजी का जल प्राणवायुसंपन्न है । वर्षा ऋतु के अतिरिक्त शेष समय अन्य नदियों के जल की तुलना में गंगाजी के जल में २५ प्रतिशत अधिक प्राणवायु (ऑक्सीजन) होती है ।

​​पवित्रतम
१. भारत की सात पवित्र नदियों में से गंगाजी प्रथम, अर्थात पवित्रतम नदी हैं । गंगाजल की एक बूंद भी संपूर्ण गंगा की भांति ही पवित्र होती है ।
२. गंगा नदी में आध्यात्मिक गंगाजी का अंशात्मक तत्त्व है, इसलिए प्रदूषण से वे कितनी भी अशुद्ध हो जाएं, उनकी पवित्रता सदासर्वकाल बनी रहती है; इसीलिए ‘विश्‍व के किसी भी जल से तुलना करने पर गंगाजल सबसे पवित्र है’, ऐसा केवल उच्च आध्यात्मिक स्तर होनेवाले संत ही नहीं, अपितु वैज्ञानिकों को भी प्रतीत होता है ।’
३. गंगाजल स्वयं पवित्र है एवं अन्यों को भी पवित्र करता है । गंगाजल का प्रोक्षण किसी भी व्यक्ति, वस्तु, वास्तु अथवा स्थान पर करने से वे वस्तुएं पवित्र हो जाती हैं ।
४. ‘देवतापूजन, जप, तप, यज्ञ, दान, श्राद्धादि धार्मिक कृत्य गंगातटपर करने से करोड गुना अधिक फल प्राप्त होते हैं । गंगातट पर अनेक ऋषि-मुनियों ने तप किए हैं । आज भी अनेक ऋषियों के आश्रम गंगातट पर बसे हुए हैं ।’ ऐसा गंगा का किनारा साधना के लिए अत्यंत उपयुक्त है ।

​​​सर्वपातकनाशिनी
१. गंगा नदी सर्वदेवमयी, सर्वतीर्थमयी, सरित्श्रेेष्ठा और महानदी तो हैं ही; परंतु ‘सर्वपातकनाशिनी’, उसकी प्रमुख पहचान है ।
२. जगन्नाथ पंडित गंगा नदी से प्रार्थना करते हुए कहते हैं, ‘जलं ते जम्बालं मम जननजालं जरयतु ।’ अर्थात हे गंगामाता ! कीचड से युक्त आपका जल मेरे पाप दूर करे ।’ प्रत्येक हिन्दू अपने जीवन में कम से कम एक बार पतितपावन गंगा में स्नान करने की अभिलाषा रखता है । हिन्दू धर्म ने ‘गंगास्नान’को एक धार्मिक विधि माना है ।
३. गंगा नदी के सभी तट तीर्थस्थल बन गए हैं और वे हिन्दुओं के लिए अतिवंदनीय एवं उपासना के लिए पवित्र सिद्धक्षेत्र हैं । ‘गंगाजी पर साढेतीन करोड तीर्थस्थल हैं ।
४. धर्माचार्यों ने यह सत्य स्वीकार किया है कि गंगादर्शन, गंगास्नान एवं पितृतर्पण के मार्ग से मोक्ष साध्य किया जा सकता है । गंगातट पर पिंडदान करने से पितरों को मुक्ति मिलती है ।

​​​​सर्वश्रेष्ठ तीर्थ
गंगानदी पृथ्वीतल का सर्वश्रेष्ठ तीर्थ है ।
१. ब्रह्मदेव ने कहा है कि ‘गंगाजी समान तीर्थ नहीं, विष्णुसमान देवता नहीं और ब्राह्मण से कोई श्रेष्ठ नहीं ।’
२. सत्ययुग में सभी स्थान पवित्र थे । त्रेतायुग में ‘पुष्कर’, जबकि द्वापरयुग में ‘कुरुक्षेत्र’ सभी तीर्थों में पवित्र तीर्थ थे और कलियुग में गंगाजी परमपवित्र तीर्थ हैं ।

​​​​​शिवतत्त्वदायिनी
‘गंगाजी से शिवतत्त्वरूपी सात्त्विक तरंगों का स्रोत मिलता है ।

​​​​​​ज्ञानमयी तथा ज्ञानदायिनी
‘गंगाजी‘ज्ञानं इच्छेत् महेश्‍वरात् मोक्षम् इच्छेत् जनार्दनात् ।’, अर्थात ‘महेश्‍वर से (शिवजी से) ज्ञान की तथा ‘जनार्दन से (श्रीविष्णुसे) मोक्ष की इच्छा करनी चाहिए ।’ शंकरजी ज्ञानमय होने के कारण उनकी जटाओं से निकली गंगाजी भी सरस्वती नदी की भांति ज्ञानमयी एवं ज्ञानदायी हैं ।’

​मोक्षदायिनी
पुराणादि धर्मग्रंथों में गंगाजीको ‘मोक्षदायिनी’ संबोधित किया गया है । कलियुग में मनुष्य को सुलभता से मोक्ष प्रदान करनेवाली गंगाजी का अनन्य महत्त्व है ।

​चैतन्यदायिनी
​गंगास्नानद्वारा होनेवाली शुद्धि सेे चैतन्यस्रोत की प्राप्ति होकर जीव की साधनाशक्ति का व्यय नहीं होता । गंगास्नान द्वारा देह की अपेक्षा कर्मशुद्धि अधिक मात्रा में होती है ।

हिंदू जीवनदर्शन में गंगोदक का स्थान

नित्य स्नान करते समय गंगाजीसहित पवित्र नदियों का स्मरण करना

हरिद्वार, प्रयाग आदि तीर्थस्थानों से गंगाजल घर लाकर उसकी पूजा करना

तीर्थ के रूप में ग्रहण करना

स्थान एवं जलशुद्धि के लिए गंगाजल का उपयोग करना

मृत्यु के उपरांत सद्गति मिले; इस हेतु मृत्यु के समय अथवा उपरांत व्यक्ति के मुख में गंगाजल डालना

मृतात्माओं को स्वर्ग प्राप्त हो, इसलिए गंगातट पर मृत व्यक्तियों का अग्निसंस्कार करना

गंगाजी में अस्थियों का विसर्जन करना, एक महत्त्कपूर्ण अंत्यविधि है

पितरों का उद्धार करने हेतु उनका श्राद्ध गंगातट पर करना, गंगाजल सहित तिल तर्पण करना
गंगा मां की साधना कैसे करें ?

​गंगास्मरण
कोई ‘गंगा, गंगा, गंगा’, इस प्रकार गंगा का स्मरण करता है, वह सर्व पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक जाता है – ब्रह्मवैवर्तपुराण
‘जो व्यक्ति आते-जाते, स्थिर रहने पर, भोजन करते हुए, ध्यान में, जागृतावस्था में और श्‍वास लेते समय निरंतर गंगास्मरण करता है, वह व्यक्ति बंधनमुक्त हो जाता है’ – भविष्यपुराण


गंगा स्तोत्र का पाठ
एक बार अगस्त्य ऋषि ने पूछा, ‘बिना गंगास्नान के मनुष्यजन्म निरर्थक है, ऐसे में दूर देश में रहनेवाले लोगों को गंगास्नान का फल कैसे प्राप्त होगा ? तब शिवपुत्र कार्तिकेय ने गंगासहस्रनाम रचा तथा उसका पाठ करने का महत्त्व भी बताया । तब से आज तक गंगाजी के उपासक प्रतिदिन ‘गंगासहस्रनामस्तोत्र’ का पाठ करते हैं ।


​गंगादर्शन
अनादि काल से कहा जाता है, ‘गङ्गे तव दर्शनात् मुक्तिः ।’, अर्थात ‘हे गंगे, आपके दर्शन से मुक्ति मिलती है ।’

मां गंगा से संबंधित त्योहार

​गंगा सप्तमी

वैशाख शुक्ल पक्ष सप्तमी को उच्च लोक में गंगाजी की उत्पत्ति हुई । इस दिन गांव-गांव से लोगों के समूह गंगाजी के गीत गाते हुए काशी पहुंचते हैं । इस दिन काशी में बडा स्नानपर्व होता है ।

​गंगा दशहरा

गंगा पूजन का पावन दिन है गंगा दशहरा । ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन ही भगीरथ गंगा को धरती पर लाए थे । इसी दिन मां गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था, जिसे गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है ।

​गंगा आरती

गंगा नदी पर बहुत से धार्मिक अनुष्ठान व धार्मिक विधियां की जाती हैं । जैसे गंगा पूजन, गंगा की आरती, पूर्वजों का श्राद्ध, अपने प्रियजनों का अस्थिविसर्जन, पितृ तर्पण आदि अनेक विधियां गंगाजी के तट पर की जाती हैं ।

🙏🚩🙏

गिरीश
Author: गिरीश

Share this post:

Leave a Comment

खबरें और भी हैं...

[wonderplugin_slider id=1]

लाइव क्रिकट स्कोर

कोरोना अपडेट

Weather Data Source: Wetter Indien 7 tage

राशिफल

error: Content is protected !!
Skip to content