December 4, 2024 8:42 pm
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*”मित्रता” एक बहुमूल्य संपदा*

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*”मित्रता” एक बहुमूल्य संपदा*
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👉 *जिन व्यक्तियों में आपस में आत्मीयता का भाव रहता है, उनमें एक-दूसरे के लिए असाधारण आकर्षण रहता है।* एक-दूसरे का हित चाहते हैं, समृद्धि चाहते हैं, उन्नति चाहते हैं. सुख चाहते हैं, सहायता के लिए तैयार रहते है, भूलों और कमजोरियों को उदारतापूर्वक सहन कर लेते हैं तथा मुसीबत के वक्त अपनी प्यारी से प्यारी वस्तु यहाँ तक कि प्राण तक देने को तैयार रहते हैं। *रुपये से चीजें मिल सकती हैं आत्मीयता नहीं मिल सकती।* वेश्या का रूप यौवन और हाव-भाव पैसे से खरीदा जा सकता है, *पर पतिव्रता पत्नी की सी वफादारी और आत्मीयता विपुल संपत्ति देकर भी नहीं खरीदी जा सकती।* बड़े-बड़े दिमाग पैसे के लिए अपनी सेवाएँ दे सकते हैं, *किंतु आंतरिक वफादारी कितनी ही संपत्ति देने पर भी नहीं मिल सकती।* चापलूस, खुशामदी, मधुरभाषी, ठग या भाँड़ प्रकृति के दरबारी लोग, धनियों की तोंद के आस-पास जोंक की तरह चिपके रहते हैं और अपना स्वार्थ सिद्ध करते रहते हैं। पर जब स्वार्थ सिद्धि में बाधा आती है, कोई लाभ नहीं होता, तो जैसे मरे बैल को छोड़कर कलीले भाग जाते हैं वैसे ही वे भी भाग जाते हैं। लाभ की आशा में विघ्न पड़ना यही एक कारण नीच पुरुषों के लिए शत्रुता का बहुत बड़ा कारण बन जाता है। *”आत्मीयता” एक ऐसा आध्यात्मिक सात्त्विक पदार्थ है, जो राजसिकता या तामसिकता से लाभ या भय से प्राप्त नहीं हो सकता।*
👉 *दो हृदयों का जहाँ एकीकरण होता है, जहाँ सच्चे हृदय से दो मनुष्य आपस में आत्मभाव, अपनापन, स्थापित करते हैं, वहाँ मैत्री का बीज जमता है।* जब किसी मनुष्य को यह पूरी तरह विश्वास हो जाता है कि अमुक मनुष्य सच्चे रूप से मेरे प्रति आत्मीयता रखता है, मेरी कमजोरियों को जानते हुए भी उदार दृष्टिकोण रखता है, मेरी उन्नति में सहायक, सुख-दुःख में साथी और आपत्ति में ढाल-तलवार का काम देता है तो उसके प्रति अंतस्तल में प्रेम उत्पन्न होता है। *दो हृदयों में एक-दूसरे के प्रति आत्मीयता होना ही “मैत्री” है। ऐसी “मैत्री” इस लोक की एक बहुमूल्य संपत्ति हैं।* जैसे—धन, विद्या, स्वास्थ्य, चतुरता, कीर्ति इस लोक की प्रधान संपत्तियाँ है वैसे ही मैत्री भी एक बहुमूल्य संपत्ति है। *”मैत्री” की महिमा अपार है।* दूध और पानी की मैत्री प्रसिद्ध है। एक-दूसरे को अपने में घुला-मिला लेते हैं। सुदामा और कृष्ण की मित्रता प्रसिद्ध है। *सत्संग एक प्रकार की मैत्री है।* गुरु और शिष्य आपस में मित्र ही तो होते हैं। सत्संग की महिमा गाते-गाते शास्त्रकार थकते नहीं, यह महिमामय सत्संग उन्हीं में होता है, जिनके हृदय आपस में एक हों। *”मित्रता” बहुत बड़ी आकर्षण शक्ति है, वह दो व्यक्तियों को जोड़कर एक कर देने में बढ़िया सीमेंट का काम करती है।*यह रचना मेरी नहीं है मगर मुझे अच्छी लगी तो आपके साथ शेयर करने का मन हुआ।🙏🏻
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गिरीश
Author: गिरीश

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