भगवान शिव को क्यों चढ़ाया जाता है दूध
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शिवपुराण के अनुसार
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शिव, महादेव, भोले शंकर या फिर नीलकंठ। भगवान शिव को न जाने कितने ही नामों से जाना जाता है। भगवान शिव के बारे में कहा जाता है कि वो विनाश के देवता है यानि सृष्टि में जब-जब पाप की अधिकता हो जाती है तो शिव प्रलय लीला द्वारा पुन: संसार का सृजन करते हैं। वहीं भगवान शिव की पसंद की बात करें तो उनकी पसंद अन्य देवताओं से काफी अलग है। भगवान शिव के एक अन्य रूप ‘शिवलिंग’ भी कई मायनों में अलग है। शिवलिंग की पूजा करने में कुछ ऐसे रीति-रिवाजों का पालन किया जाता है जो भगवान शिव को बहुत भाता है।
शिवलिंग को दूध से स्नान करवाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव को दूध से अभिषेक किया जाना बेहद पसंद है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि शिवलिंग को दूध से स्नान क्यों करवाया जाता है। वास्तव में इसके पीछे भी एक कहानी है। समुद्र मंथन की पूरी कथा विष्णुपुराण और भागवतपुराण में वर्णित है। जिसमें एक कथा मिलती है। इस कथा के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान जब विष की उत्पत्ति हुई थी तो पूरा संसार इसके तीव्र प्रभाव में आ गया था। जिस कारण सभी लोग भगवान शिव की शरण में आ गए क्योंकि विष की तीव्रता को सहने की ताकत केवल भगवान शिव के पास थी। शिव ने बिना किसी भय के संसार के कल्याण हेतु विष पान कर लिया। विष की तीव्रता इतनी अधिक थी कि भगवान शिव का कंठ नीला हो गया।
विष का घातक प्रभाव शिव और शिव की जटा में विराजमान देवी गंगा पर पड़ने लगा। ऐसे में शिव को शांत करने के जल की शीलता भी काफी नहीं थी। सभी देवताओं ने उनसे दूध ग्रहण करने का निवेदन किया। लेकिन अपने जीव मात्र की चिंता के स्वभाव के कारण भगवान शिव ने दूध से उनके द्वारा ग्रहण करने की आज्ञा मांगी। स्वभाव से शीतल और निर्मल दूध ने शिव के इस विनम्र निवेदन को तत्काल ही स्वीकार कर लिया। शिव ने दूध को ग्रहण किया जिससे उनकी तीव्रता काफी सीमा तक कम हो गई पंरतु उनका कंठ हमेशा के लिए नीला हो गया और उन्हें नीलकंठ के नाम से जाना जाने लगा।
कठिन समय में बिना अपनी चिंता किए दूध ने शिव और संसार की सहायता के लिए दूध ने शिव के पेट में जाकर विष की तीव्रता को सहन किया। इसलिए शिव को दूध अत्यधिक प्रिय है। वहीं दूसरी तरफ शिव को सांप भी बहुत प्रिय है क्योंकि सांपों ने विष के प्रभाव को कम करने के लिए विष की तीव्रता स्वंंय में समाहित कर ली थी। इसलिए अधिकतर सांप बहुत जहरीले होते हैं।
।। ॐ नमः शिवाय ।।
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