October 30, 2024 1:12 am
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भगवान् की मानसिक पूजा

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भगवान् को पधारे बहुत समय हो गया, अब भगवान् की पूजा करनी चाहिए । इस प्रकार ध्यान करे कि अब मैं भगवान् की मानसिक पूजा कर रहा हूँ। मैं देख रहा हूँ कि एक चौकी मेरे दाहिनी ओर तथा दूसरी मेरे बायीं ओर रखी है। चौकी का परिमाण लगभग तीन फुट चौड़ा और छः फुट लंबा है। दाहिनी ओर की चौकी पर पूजा की सारी पवित्र सामग्री सजा रखी है। भगवान् मेरे सामने विराजमान हैं। भगवान् स्नान करके पधारे हैं। वस्त्र धारण कर रखे हैं और यज्ञोपवीत सुशोभित है ।

अब मैं पाद्य चरण धोने का जल लेकर भगवान् के श्रीचरणों को धो रहा हूँ, बायें हाथ से जल डाल रहा हूँ और दाहिने हाथ से चरण धो रहा हूँ तथा मुख से यह मन्त्र बोल रहा हूँ

ॐ पादयोः पाद्यं समर्पयामि नारायणाय नमः🙏

फिर उस बर्तन को बायीं ओर चौकी पर रखकर, हाथ धोकर दूसरा सुगन्ध युक्त गंगाजल से भरा प्याला लेता हूँ और भगवान् को अर्घ्य देता हूँ । भगवान् दोनों हाथों की अंजलि पसारकर अर्घ्य ग्रहण करते हैं । इस समय उन्होंने अपने चार हाथों के आयुध दो हाथों में ले लिये हैं। अर्घ्य अर्पण करते समय मैं मन्त्र बोलता हूँ

ॐ हस्तयोरर्घ्यं समर्पयामि नारायणाय नमः🙏

इस प्रकार भगवान् अर्घ्य ग्रहण करके उस जल को छोड़ देते हैं। फिर मैं उस प्याले को बायीं ओर चौकी पर रख देता हूँ तथा हाथ धोकर, आचमनका जल लेकर भगवान् को आचमन करवाता हूँ और मन्त्र बोलता हूँ

ॐ आचमनीयं समर्पयामि नारायणाय नमः🙏

आचमन के अनन्तर भगवान् के हाथ धुलाता हूँ और प्याले को बायीं तरफ चौकी पर रखकर हाथ धोता हूँ। फिर एक कटोरी दाहिनी ओर की चौकी से उठाता हूँ, जिसमें केसर, चन्दन, कुंकुम आदि सुगन्धित द्रव्य घिसा हुआ रखा है। उस कटोरी को मैं बायें हाथ में लेकर दाहिने हाथ से भगवान् के मस्तक पर तिलक करता हूँ और मन्त्र बोलता हूँ

ॐ गन्धं समर्पयामि नारायणाय नमः🙏

उसके बाद उस कटोरी को बायीं ओर की चौकी पर रख देता हूँ तथा दूसरी कटोरी लेता हूँ, जिसमें छोटे छोटे आकार के सुन्दर मोती हैं, उन्हें मुक्ताफल कहते हैं। मैं बायें हाथ में मोती की कटोरी लेकर दाहिने हाथ से भगवान् के मस्तक पर मोती लगाता हूँ और यह मन्त्र बोलता हूँ

ॐ मुक्ताफलं समर्पयामि नारायणाय नमः🙏

इसके पश्चात् सुन्दर सुगन्धित पुष्पों से दोनों अंजलि भरकर भगवान् पर चढ़ाता हूँ, पुष्पों के साथ तुलसीदल भी है और यह मन्त्र बोलता हूँ

ॐ पत्रं पुष्पं समर्पयामि नारायणाय नमः🙏

यह मन्त्र बोलकर भगवान् पर पत्र पुष्प चढ़ा देता हूँ। इसके अनन्तर एक अत्यन्त सुन्दर सुगन्धपूर्ण बड़ी पुष्प-माला दोनों हाथों में लेकर मुकुट पर से मैं पहनाता हूँ और यह मन्त्र बोलता हूँ

ॐ मालां समर्पयामि नारायणाय नमः

फिर देखता हूँ कि एक धूपदानी है, जिसमें निर्धूम अग्नि प्रज्वलित हो रही है, मैं एक कटोरी में जो चन्दन, कस्तूरी, केसर आदि नाना प्रकार के सुगन्धित द्रव्यों से मिश्रित धूप रखी है, उसे अग्नि में डालकर भगवान् को धूप देता हूँ और यह मन्त्र बोलता हूँ
ॐ धूपमाघ्रापयामि नारायणाय नमः🙏

गिरीश
Author: गिरीश

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