फतेहपुर चौरासी ।उन्नाव।
गुरु पूर्णिमा एक ऐसा पर्व है जो भारतीय संस्कृति और परं
परा में विशेष स्थान रखता है। यह दिन हमारे जीवन में गुरु के योगदान को सम्मानित करने और उनकी कृपा के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा को महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास के जन्मदिन के रूप में भी मनाया जाता है, जिनका योगदान भारतीय सनातन धर्म और साहित्य में अमूल्य है।
गुरु पूर्णिमा के दिन विशेष रूप से व्यास पीठ पूजन का आयोजन किया जाता है। इस पूजन का उद्देश्य महर्षि वेदव्यास के प्रति कृतज्ञता प्रकट करना और उन्हें आदरांजलि देना है। यह पूजन आमतौर पर मंदिरों, आश्रमों और शिक्षा संस्थानों में आयोजित किया जाता है, जहां गुरु-शिष्य परंपरा को मान्यता दी जाती है।
गुरु पूर्णिमा और व्यास पीठ पूजन का महत्त्व हमारे जीवन में गुरु की भूमिका को रेखांकित करता है। गुरु न केवल हमें ज्ञान देते हैं, बल्कि जीवन की सही दिशा भी दिखाते हैं। वे हमें सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं और हमारे मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास में सहायता करते हैं।
गुरु पूर्णिमा और व्यास पीठ पूजन हमारी संस्कृति का एक अहम हिस्सा हैं। यह पर्व हमें यह याद दिलाता है कि गुरु के बिना ज्ञान की प्राप्ति असंभव है। इस दिन हम अपने गुरु के प्रति श्रद्धा और समर्पण प्रकट करते हैं और उनकी कृपा से अपने जीवन को धन्य बनाते हैं। महर्षि वेदव्यास की जयंती पर मनाया जाने वाला यह पर्व हमें उनके अमूल्य योगदान की याद दिलाता है और हमें उनके मार्गदर्शन में चलने की प्रेरणा देता है।
इस प्रकार, गुरु पूर्णिमा और व्यास पीठ पूजन एक ऐसा अवसर है जब हम अपने जीवन के मार्गदर्शकों के प्रति आभार व्यक्त कर सकते हैं और उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को सफल बना सकते हैं। उक्त बातें आचार्य ऋषि कान्त मिश्र शास्त्री
ने बताई । उन्होंने कहा इसीलिए हमारे पुराणों में भी गुरू की महिमा का वर्णन गुरुर्ब्रम्हा गुरुर्विष्णु गुरुरदेवो महेश्वरा गुरू साक्षात परमब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः के रूप में किया गया है।
रिपोर्ट आर पी एस समाचार
Author: आर पी एस न्यूज़
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