🚩🌺🚩🌺🚩🌺🚩🌺🚩🌺
*🚩🌺मन के हारे हार है, मन के जीते जीत*
🚩🌺🚩🌺🚩🌺🚩🌺🚩🌺
*🚩🌺जीवन के किसी भी क्षेत्र और अवस्था में यदि असफलता हाथ लगती है, तो उसका कारण केवल मेहनत की कमी नहीं होता। मेहनत को प्रेरित करने वाला तत्व संकल्प शक्ति है।*
*🚩🌺इतिहास साक्षी है कि कठिनाइयों का सामना अपने अदम्य साहस और अटूट विश्वास के बल पर किया जा सकता*
*🚩🌺जीवन के किसी भी क्षेत्र और अवस्था में यदि असफलता हाथ लगती है, तो उसका कारण केवल मेहनत की कमी नहीं होता। मेहनत को प्रेरित करने वाला तत्व संकल्प शक्ति है।*
*🚩🌺इतिहास साक्षी है कि कठिनाइयों का सामना अपने अदम्य साहस और अटूट विश्वास के बल पर किया जा सकता है। मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। मन में ठान लिया कि हमें जीतना है तो जीत के लिए जी-जान से तैयारी शुरू हो जाती है।*
*🚩🌺यूं तो जीवन को महान बनाने के लिए मनुष्य निरंतर प्रयत्नशील रहता है, परंतु वे लोग सफल हो जाते हैं, जिनके पास श्रम को पूर्ण व्यवस्थित व संचालित करने की संकल्प शक्ति होती है। संकल्प जीवन की सजीवता का बोध कराता है। यह वह शक्ति है, जो मनुष्य की जीवन-शैली को सुनिश्चित करती है। कर्म-क्षेत्र पर मनुष्य अपने बुद्धि-विवेक से कर्तव्यनिष्ठ होकर कार्य-व्यवहार करता है, परंतु सफलता या असफलता उसके द्वारा किए गए कर्म के प्रति संकल्प का परिणाम होती है।*
*🚩🌺आज के भौतिकवादी युग में ऐसी घटनाएं देखने को मिलती हैं, जिनसे उत्तरोत्तर हो रहे मानवीय मूल्यों के ह्रास का पता चलता है, पर वह भी मनुष्यों द्वारा किए गए संकल्पों का प्रतिफलन है। संकल्प शक्ति की गति बहुत तीव्र है। विज्ञान में इसके समतुल्य गति का कोई अन्य साधन नहीं है। यह शक्ति अति प्रबल है और इसका व्यक्तित्व भी कुशाग्र बुद्धि चिंतन और व्यावहारिकता के प्रभामंडल से निर्मित होता है। ऐसा व्यक्तित्व सरलता से सफल हो जाता है।*
*🚩🌺संकल्प का बीज कर्म का बीज है, जो आत्मा के अंदर पूरे जीवन क्रम को समेटे हुए सुषुप्त अवस्था में पड़ा रहता है। यह समयानुसार मनुष्य के जीवन को दिशा प्रदान करता है। प्रयास करने के बाद भी बार-बार हार जाना कोई दुख की बात नहीं है, पर संकल्प से हार जाना दुख के साथ समस्याओं को आमंत्रित करता है।*
*🚩🌺सृजन से संवृद्धि तक पहुंचने के लिए किसी भी कार्य में संकल्प के साथ उत्साह, विश्वास और पुरुषार्थ का आंतरिक वर्चस्व होना चाहिए, तब इसका परिणाम भी स्थायित्व लिए होगा। मनुष्य अपने भाग्य या दुर्भाग्य का निर्माता खुद है। यदि परिश्रम फल-फूल रहा है, तो यह भी मनुष्य की विवेकशीलता और कर्मठता के कारण है। बुद्धि-विवेक उसी अदम्य साहस के कारण फलित होती है, जहां संकल्प सक्रिय होता है।*
*🚩🌺संघर्ष जिंदगी का पर्याय है। सबके जीवन में अनेक कठिनाइयाँ बाया बनकर खड़ी होती है जिन्हें हमे अपनी मेहनत लगत स्वं साहस से पार कर सकते हैं। हम सब को कभी न कभी त्रासद परिस्थितियों की दरिया में बना पड़ता है पर तट पर बध पहुंचते है तो अपने मन को मजबूत कर देना बेतहाशा परिश्रम करते हैं। कभी घुटने नही टेको निराश नहीं होते बस आगे बढ़ते ही जाते हैं। | जब तक मत हार न माने तब तक हमारा शरीर भी हार नहीं मानता। निराश होकर रुदन करना विलाप करना व्यर्थ है, आवश्यकता है अपना दृष्टिकोण बदलने की। अगर मन में आस्था और लगन हो तो पहाड़ को भी हिलाया जा सकता है।
*🚩🌺हमें अपनी सोच की सदैव सकारात्मक रखते हुए एक नया इतिहास रचना है। हमारा मन ही तो है जी हम पर राज करता है।यदि यह सदैव सकारात्मक एवं साहसी रहेगा ती में चरमोत्कर्ष का || आनंद चखाएगा परंतु यदि यह हर मन मर मुरझा गया तो वहीं हमारा जीवन व्यर्थ हो जाएगा। मसलन एक युवती की टाँगे नहीं धी पर उसने हार नहीं मानी , वही महिला अपनी नकली टाँग के सहारे ऐवरेस्ट के शिखर पर पहुँची और भारत का झंडा लहराया। ऐसा ही साहसी मन हो तो जिंदगी में कोई भी काम मुश्किल नहीं) इसलिये मन के हारे हार है, मन के जीते जीत*
*🚩🌺जीवन में हार जीत तो लगी रहती है। हम यदि कोई भी कार्य कर रहे तो उसका एक ही परिणाम होगा या तो जी या तो हार। हमें कोई भी कार्य बिना उसका परिणाम सूची करना चाहिए। परिणाम कुछ भी हो पर हमें हमेशा अच्छा ही सोचना चाहिए। कहा जाता है मन के हारे हार है मन के जीते जीत जिसका अर्थ यह होता है कि यदि अगर हम मन से ही हार जाएंगे तो हम कभी भी अपने कार्य में सफलता प्राप्त नहीं कर पाएँगे और यदि हमारे मन में यह दृढ़ता रहेगी कि हमें जीतना है तो हम हार कर भी जीत जाएँगे।*
*🚩🌺हमारे द्रुढ़ मन की शक्ति हमें कुछ भी करवा सकती है। यदि हम निश्चय कर ले तो हम पहाड़ पर भी विजय प्राप्त कर सकते हैं l कभी कभी हमें छोटी सी राई भी पहाड़ की तरह मालूम होती है। हम हारने से पहले ही अपनी हार मान लेते हैं। जिस व्यक्ति ने रणभूमि में शत्रु को देख हार मान ली वह व्यक्ति कभी युद्ध नहीं जीत सकता।*
*🚩🌺हर क्षेत्र में जीत हासिल करने के लिए हमें कुशल ज्ञान के साथ-साथ खुद पर आत्मविश्वास का होना जरूरी है। यदि हम हार का अनुभव करेंगे तो हम निश्चित ही हारेंगे। यदि हम जीत का अनुभव करते हैं तो हमारे जीतने के अवसर बढ़ जाएँगे।हार और जीत किसी के हाथों में नहीं होती पर हमें हार से पहले ही हार नहीं माननी चाहिए। जिससे खुद पर भरोसा हो वह हार को जीत में बदल सकता है।*
*🚩🌺विजय का मुख्य कारण मेहनत के साथ उत्साह तथा द्रुढ निश्चय होता है। जीवन में लक्ष्य प्राप्त करने के लिए द्रुढ निश्चय होना जरूरी है। यदि हमारा मन कमजोर पड़ जाए तो निराशा हम पर हावी हो जाती है।*
*🚩🌺हमारे दुख सुख सारे हमारे मन पर निर्भर करते हैं। यदि हमारे मन पर नियंत्रण हो तो हम बड़े से बड़ा दुख मुस्कुराकर सहन कर जाते हैं। इसीलिए तो कहते हैं मन के हारे हार और मन के जीते जीत। यदि कोई मनुष्य अपने मन में अपनी हार नीचे समझता है तो इस धरती पर उस व्यक्ति को कोई नहीं जिता सकता।*
*🚩🌺यदि हमें सांसारिक बंधनों से छुटकारा पाना है तो अपने मन पर नियंत्रण करना जरूरी है। यदि हमारे मन पर संयम ना हो तो इसके हमें विपरीत परिणाम मिलते हैं। इसलिए हमें सकारात्मक विचार रखना चाहिए। हमें अपने चंचल मन को स्थिर बनाना चाहिए। ताकि हम जीत के और अपने लक्ष्य के करीब जा सके। यदि हमारा मन चंचल है तो लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना कठिन हो जाता है। मनुष्य के विचारों का परिणाम उसके कार्य पर पड़ता है। इसीलिए हमें अपने विचार सकारात्मक रखनी चाहिए। ताकि हमारे हर कार्य का परिणाम भी सकारात्मक आ सके।*
*🚩🌺संस्कृत की एक कहावत है–’मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः’ अर्थात् मन ही मनुष्य के बन्धन और मोक्ष का कारण है। तात्पर्य यह है कि मन ही मनुष्य को सांसारिक बन्धनों में बाँधता है और मन ही बन्धनों से छुटकारा दिलाता है। यदि मन न चाहे तो व्यक्ति बड़े–से–बड़े बन्धनों की भी उपेक्षा कर सकता है।*
*🚩🌺शंकराचार्य ने कहा है कि “जिसने मन को जीत लिया, उसने जगत् को जीत लिया।” मन ही मनुष्य को स्वर्ग या नरक में बिठा देता है। स्वर्ग या नरक में जाने की कुंजी भगवान् ने हमारे हाथों में ही दे रखी है।*🚩🌺मन के हारे हार है, मन के जीते जीत॥ अर्थात् दुःख और सुख तो सभी पर पड़ा करते हैं, इसलिए अपना पौरुष मत छोड़ो; क्योंकि हार और जीत तो केवल मन के मानने अथवा न मानने पर ही निर्भर है, अर्थात् मन के द्वारा हार स्वीकार किए जाने पर व्यक्ति की हार सुनिश्चित है।*
*🚩🌺इसके विपरीत यदि व्यक्ति का मन हार स्वीकार नहीं करता तो विपरीत परिस्थितियों में भी विजयश्री उसके चरण चूमती है। जय–पराजय, हानि–लाभ, यश–अपयश और दुःख–सुख सब मन के ही कारण हैं; इसलिए व्यक्ति जैसा अनुभव करेगा वैसा ही वह बनेगा।मन की दृढ़ता के कुछ उदाहरण हमारे सामने ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जिनमें मन की संकल्प–शक्ति के द्वारा व्यक्तियों ने अपनी हार को विजयश्री में परिवर्तित कर दिया। महाभारत के युद्ध में पाण्डवों की जीत का कारण यही था कि श्रीकृष्ण ने उनके मनोबल को दृढ़ कर दिया था। नचिकेता ने न केवल मृत्यु को पराजित किया, अपितु यमराज से अपनी इच्छानुसार वरदान भी प्राप्त किए। सावित्री के मन ने यमराज के सामने भी हार नहीं मानी और अन्त में अपने पति को मृत्यु के मुख से निकाल लाने में सफलता प्राप्त की।*
*🚩🌺अल्प साधनोंवाले महाराणा प्रताप ने अपने मन में दृढ़–संकल्प करके मुगल सम्राट अकबर से युद्ध किया। शिवाजी ने बहुत थोड़ी सेना लेकर ही औरंगजेब के दाँत खट्टे कर दिए। द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका द्वारा किए गए अणुबम के विस्फोट ने जापान को पूरी तरह बरबाद कर दिया था, किन्तु अपने मनोबल की दृढ़ता के कारण आज वही जापान विश्व के गिने–चुने शक्तिसम्पन्न देशों में से एक है। दुबले–पतले गांधीजी ने अपने दृढ़ संकल्प से ब्रिटिश साम्राज्य की नींव को हिला दिया था। इस प्रकार के कितने ही उदाहरण प्रस्तुत किए जा सकते हैं, जिनसे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि हार–जीत मन की दृढ़ता पर ही निर्भर है।*
*🚩🌺देखा गया है कि जिस काम के प्रति व्यक्ति का रुझान अधिक होता है, उस कार्य को वह कष्ट सहन करते हुए भी पूरा करता है। जैसे ही किसी कार्य के प्रति मन की आसक्ति कम हो जाती है, वैसे–वैसे ही उसे सम्पन्न करने के प्रयत्न भी शिथिल हो जाते हैं। हिमाच्छादित पर्वतों पर चढ़ाई करनेवाले पर्वतारोहियों के मन में अपने कर्म के प्रति आसक्ति रहती है। आसक्ति की यह भावना उन्हें निरन्तर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती रहती है।*
*🚩🌺मन सफलता की कूँजी है। जब तक न में किसी कार्य को करने की तीव्र इच्छा रहेगी, तब तक असफल होते हुए भी उस काम को करने की आशा बनी रहेगी। एक प्रसिद्ध कहानी है कि एक राजा ने कई बार अपने शत्रु से युद्ध किया और पराजित हुआ। पराजित होने पर वह एकान्त कक्ष में बैठ गया। वहाँ उसने एक मकड़ी को ऊपर चढ़ते देखा। मकड़ी कई बार ऊपर चढ़ी, किन्तु वह बार–बार गिरती रही। अन्तत: वह ऊपर चढ़ ही गई। इससे राजा को अपार प्रेरणा मिली। उसने पुनः शक्ति का संचय किया और अपने शत्रु को पराजित करके अपना राज्य वापस ले लिया। इस छोटी–सी कथा में यही सार निहित है कि मन के न हारने पर एक–न–एक दिन सफलता मिल ही जाती है।*
*🚩🌺मन को शक्तिसम्पन्न बनाने के लिए सबसे पहले उसे अपने वश में रखना होगा।अर्थात् जिसने अपने मन को वश में कर लिया, उसने संसार को वश में कर लिया, किन्तु जो मनुष्य मन को न जीतकर स्वयं उसके वश में हो जाता है, उसने मानो सारे संसार की अधीनता स्वीकार कर ली।मन को शक्तिसम्पन्न बनाने के लिए हीनता की भावना को दूर करना भी आवश्यक है। जब व्यक्ति यह सोचता है कि मैं अशक्त हूँ, दीन–हीन हूँ, शक्ति और साधनों से रहित हूँ तो उसका मन कमजोर हो जाता है। इसीलिए इस हीनता की भावना से मुक्ति प्राप्त करने के लिए मन को शक्तिसम्पन्न बनाना आवश्यक है।*
*🚩🌺मन परम शक्तिसम्पन्न है। यह अनन्त शक्ति का स्रोत है। मन की इसी शक्ति को पहचानकर ऋग्वेद में यह संकल्प अनेक बार दुहराया गया है–”अहमिन्द्रो न पराजिग्ये” अर्थात मैं शक्ति का केन्द्र हैं और जीवनपर्यन्त मेरी पराजय नहीं हो सकती है।*
*🚩🌺यदि मन की इस अपरिमित शक्ति को भूलकर हमने उसे दुर्बल बना लिया तो सबकुछ होते हुए भी हम अपने को असन्तुष्ट और पराजित ही अनुभव करेंगे और यदि मन को शक्तिसम्पन्न बनाकर रखेंगे तो जीवन में पराजय और असफलता का अनुभव कभी न होगा।*
*🚩🌺समाप्त 🚩🌺*
🚩🌺🚩🌺🚩🌺🚩🌺🚩🌺